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कब तक झुट्टे को पूजोगे (ग़ज़ल)

बह्र : 22 22 22 22

जब तक पैसे को पूजोगे

चोर लुटेरे को पूजोगे

जल्दी सोकर सुबह उठोगे 

तभी सवेरे को पूजोगे

खोलो अपनी आँखें वरना

सदा अँधेरे को पूजोगे

नहीं पढ़ोगे वीर भगत को

तुम बस पुतले को पूजोगे

ईश्वर जाने कब से मृत है

कब तक मुर्दे को पूजोगे

अब तो जान चुके हो सच तुम

कब तक झुट्टे को पूजोगे

----------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 15, 2022 at 11:59pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जयनित जी

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 15, 2022 at 1:16pm

आदरणीय धर्मेन्द जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई आपको।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 12, 2022 at 6:52pm

शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब। आप सही कह रहे हैं ये मिसरा बदलना पड़ेगा। 

Comment by Samar kabeer on September 12, 2022 at 4:52pm

जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें , आपकी ग़ज़ल के क़वाफ़ी दुरुस्त हैं I 

'नहीं पढ़ोगे भगतसिंह को' इस मिसरे पर ध्यान दें,मात्राएँ पूरी हैं लेकिन गेयता नहीं है I 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 8, 2022 at 2:02pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी  साहब आप सही कह रहे हैं ये मिसरा बदलना पड़ेगा

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 8, 2022 at 2:01pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 5, 2022 at 9:52pm

आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। 

'मृत्यु हो चुकी है ईश्वर की'  यह मिसरा रवानी में नहीं है, मात्रा गणना आपने कैसे की? 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2022 at 1:07pm

आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 28, 2022 at 10:37pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, यहाँ ए की मात्रा को हटाने के बाद पैस और लुटेर निरर्थक शब्द बचते हैं इसलिए ईता का दोष नहीं बनता| लुटेरे का ऐरे निकाल दें तब भी पैस तो निरर्थक ही रहेगा इसलिए भी ईता नहीं बनता| अर्थात यहाँ किसी प्रकार से ईता नहीं बनता| आप कुछ और बताना चाहते हैं तो स्पष्ट करें|

Comment by Chetan Prakash on August 28, 2022 at 7:37pm
प्रिय भाई, आपको कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं, आप अपने मतले पर फोकस रख क्वारी निश्चित करें और जो स्थापित मान्यता काफिया तय करने के सम्बन्ध में है, मैं आपको बता चुका हूँ! आप माने तो ठीक, नहीं मानते हैं, मुझे कोई ज़िद नहीं है! हाँ, जिस तरह आपने अपनी गज़ल में क्वाफी निर्धारित किए हैं, ईता दोष गज़ल में हो गया है!

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