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 घटा - घोप   अन्धेर  है, कहीं    न   पहरेदार ।

 तक्षक  बनता काल है, क्या  होगा  घर-बार ।। ( 1 )

+++++++++++++++++++++++++ 

 

नागफनी  वन हो गये, जंगल  ...नम्बरदार  ।

बना कैक्टस मुँहलगा, फुदकता - बार  बार ।।   ( 2 )

++++++++++++++++++++++++++++++

रोशन  जो  दिखती  नहीं, गाँव  सखा  तक़दीर  ।

बुझा- बुझा सा मन हुआ, सोच  रहा ताबीर  ।।  ( 3 )

+++++++++++++++++++++++++++

 ठकुर   सुहाती  हो  रही, महफिल - महफिल आज । 

 राग   लोमड़ी   गा  रही,  हो   कुर्सी   अब    साज  ।।  ( 4 )

++++++++++++++++++++++++++++++

 क्या होगा इस बाग का,    लू       ..बरसाती  .आग ।

 दावानल बनकर  यहाँ, ,   डसे न  आग   सुहाग ।। ( 5 )

++++++++++++++++++++++++++++++

मौलिक व अप्रकाशित 

प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

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Comment by मिथिलेश वामनकर on April 1, 2022 at 5:48pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया दोहे लिखे हैं. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें. सादर 

Comment by Samar kabeer on March 29, 2022 at 3:56pm

जनाब  चेतन प्रकाश जी आदाब' सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें I 

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