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बेमौसम पतझड़ आया हो जैसे

पेड़ से झड़ते पत्तों-सी थर्राती

परिक्लांत पक्षी की पुकार

बींधती कराह-सी

सारी हवा में घुल गई

शोक समाचार को सुनते ही

आज अचानक

हवा जहाँ कहीं भी थी

वहीं की वहीं रूक गई

कि जैसे वह दिवंगत आत्मा

मेरे मित्र

केवल तुम्हारी माँ ही नहीं, वह तो

सारी सृष्टि की माँ रही

पेड़, पत्ते, पक्षी, मुझको, तुमको

एक संग सभी को

आज अनाथ कर गई

 

पुनर्जन्म सच है यदि तो कैसे कह दूँ

किसी गए जन्म में सच में

वह मेरी माँ नहीं थी ?

वरना यह मन मेरा इतना बेचैन

इस रास्ते से उस रास्ते

इस कमरे से उस कमरे

इतना तिलमिला क्यूँ रहा है ?

जैसे परलोक से कोई डोर मुझको मानो

अनन्य विनती करती, पलछिन आज

उस पुण्य आत्मा के पास

बेतहाशा बुला क्यूँ रही है ?

... और मैं उस पुण्य आत्मा को अपनी

अप्रमेय विनम्र श्रध्दा देने

झुककर आश्रीवाद लेने

उस अपरोक्ष आत्मा की ओर अपलक

प्रवर्तित, बेबस, अन्यमनस्क

खिचा चला जा रहा हूँ .. क्यूँ

 

माँ, माँ, मैं आ रहा हूँ ..

         --------

 

( मेरे साथ बचपन से ऐसा कई बार हुआ है कि किसी और का दुख मुझको बहुत अपना-सा लगता है। एक मित्र की माता श्री के

चले जाने पर कुछ ऐसा ही दुख अनुभव हुआ, और इस श्रध्दांजलि

ने जन्म लिया )      

  • विजय निकोर

              

       (मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 493

Comment

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Comment by vijay nikore on December 5, 2021 at 5:09pm

आदरणीय भाई समर जी, सराहना के लिए आभारी हूँ।

Comment by vijay nikore on December 5, 2021 at 5:08pm

आदरणीय मित्र विजय शंकर  जी, सराहना के लिए आभारी हूँ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 20, 2021 at 11:12pm

आदरणीय विजय निकोर जी , आपकी लेखनी के साथ साथ आपके विचार बहुत गंभीर होते हैं और भावनाएं मानवता से ओत-प्रोत। दिल को छु जाती हैं और प्रेरित भी करती है। ..... और क्या कहूँ , दर्द तो जीवन साथी है , हमें सहनशील बनाता है। बधाई , सादर

Comment by Samar kabeer on October 4, 2021 at 3:39pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब , बहुत अच्छी रचना हुई है , इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें I 

कृपया ध्यान दे...

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