For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया

जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया 
सुनते हैं वो पागल लड़का टूट गया.
.
थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस
और अचानक मेरा सपना टूट गया.
.
अब ये आँखें कोई ख्वाब नहीं बुनतीं
पिछली नींद में मेरा करघा टूट गया.
.
अपने लालच को तुम काबू में रक्खो
वो देखो इक और सितारा टूट गया.
.
एक ज़रा सी बात से बातें यूँ बिगडीं
फिर तो जैसे हर समझौता टूट गया.
.
आप अदू से दूर हुए ये नेमत है
बिल्ली की क़िस्मत से छींका टूट गया.
.
कह के मुकरना तेरी आदत होगी पर
सोच अगर लोगों का भरोसा टूट गया.
.
तेरी याद की गहरी खाई से बाहर
आते ही आते फिर रस्सा टूट गया.
.
“नूर” मेरा उस नूर से मिल जाएगा फिर
जस पल मेरे जिस्म का पिंजरा टूट गया.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 890

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2021 at 9:47am

धन्यवाद आ. सुरेन्द्र भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 14, 2021 at 8:38am

धन्यवाद आ. श्याम नारायण जी 

Comment by नाथ सोनांचली on October 14, 2021 at 7:04am

आद0 भाई नीलेश नूर जी सादर अभिवादन।

मुझे तो हर शेर सवा शेर लगा। गज़ब का कथ्य लिया है आपने। क्या कहने। बाकमाल। बहुत बहुत बधाई भाई जी

Comment by Shyam Narain Verma on October 8, 2021 at 11:35am
नमस्ते जी, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 6, 2021 at 5:05pm

//मैं चूँकि उस सामान्य से आगे देखता हूँ //

जय हो .. :-))

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2021 at 9:25am

धन्यवाद आ. बृजेश  ब्रज जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2021 at 9:25am

धन्यवाद आ. सौरभ सर..
आप का ग़ज़ल पर आना ही अपने आप में ईनाम होता है. आपकी विस्तृत टिप्पणी से अभिभूत हूँ. 


"अपने लालच को तुम काबू में रक्खो / वो देखो इक और सितारा टूट गया. ".. सितारे टूटने पर कुछ मांगना सामान्य और तयशुदा सी बात है ..
मैं चूँकि उस सामान्य से आगे देखता हूँ इसलिए सोचता हूँ कि सितारे टूटते ही इसलिए हैं कि कोई कुछ माँग सके..नियति स्वयं को प्रकट करने के मार्ग स्वयं प्रशस्त करती है ...

मैंने माण्डूकोपनिषद तो नहीं पढ़ा लेकिन मुझे लगता है 5000 साल की जीन मेमोरी जो कहीं से चली आ रही है उसने मेरे मस्तिष्क के किसी उतक को उत्प्रेरित किया होगा जिससे यह शेर हो पाया ..
वैसे भी सब कुछ कभी न कभी कहा ही जा चुका है.. न्य कुछ नहीं सिवाय अंदाज़-ए-बयाँ के.. 

आपको ग़जल पसंद आई तो लिखना सार्थक हुआ..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 6, 2021 at 9:17am

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 5, 2021 at 3:16pm

वाह क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय नीलेश जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2021 at 2:36pm

आदरणीय नीलेश भाई, इस अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें.

एक-एक कर शेरों में ठोस बिम्बों का विपुल प्रयोग चकित भी करता है, प्रायोगिक तो है ही.

यथा, ’मेरा करघा टूट गया’ या, ’.. गहरी खाई से बाहर / आते ही आते फिर रस्सा टूट गया’ 

अपने लालच को तुम काबू में रक्खो / वो देखो इक और सितारा टूट गया.  ......... भाई, ये बात कुछ समझ में नहीं आयी. सितारे का टूटना ही तो लालच का कारण होता है, जो इसे हवा देता है, न कि वाइस-वर्सा.

सितारे टूटते हुए न दीखें, तो कोई अपने मन की मुराद की पूर्ति के लिए ललक भी न दिखाए. इस सोच की बिना पर मैं अपनी बात रख रहा हूँ. 

थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस / और अचानक मेरा सपना टूट गया.  ........ इस शेर के होने पर मैं मुग्ध हूँ. लेकिन कमाल तो मक्ता ने किया है - “नूर” मेरा उस नूर से मिल जाएगा फिर / जस पल मेरे जिस्म का पिंजरा टूट गया. 

क्या बात है. क्या बात है ! 

मक्ता को माण्डूक उपनिषद के अद्वैतप्रकरण की श्लोक-संख्या 4 के आलोक में देखिए -

घटादीषु प्रलीनेषु घटाकाशादयो यथा ।
आकाशे प्रलीयन्ते तद्वज्जीवा इहात्मनि ।।
अर्थात, घड़ों के टूट जाने पर जैसे उनके भीतर के आकाश और बाहर के बृहद आकाश केबीच का भेद मिट जाता है, और दोनों आकाश एक-दूसरे के साथ एकाकार हो जाते हैं, वैसे ही जीवात्मा मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाती है. 

जय-जय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
8 minutes ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service