For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विश्व पटल पर हिन्दी का परचम लहराया

संप्रभू भाषा हिन्दी भारत की मिट्टी से उपजी है जो किसी की मोहताज नहीं है। इसकी अपनी प्राणवायु, प्राणशक्ति व उदारभाव होने के कारण ये शब्दसंपदा का अनूठा उपहार हैं। 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में करीब 44% से ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली राष्ट्र भाषा हिन्दी को दुनिया में बोलने वालों का प्रतिशत 18.5% हैं। दुनिया में सबसे अधिक बोली जाने वाली हिन्दी भाषा विश्व की पांच भाषाओं में से एक है।

भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 2006 में दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस की घोषणा की जाने के साथ ही विदेशों में भारतीय दूतावास इस दिवस पर विभिन्न विषयों पर हिन्दी में कार्यक्रम आयोजित करते हुये विशेष आयोजन करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से प्रचार-प्रसार किया जा रहा हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी,1975 में मनाया गया जिसमें तीस देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुये थे। और नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने मनाया था और दूसरा व तीसरा भारतीय नार्वे सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल जी की अध्यक्षता में बहुत ही धूम-धाम से मनाया गया।

भारत के अलावा अनुमानित 800 से अधिक दुनिया के विश्वविद्यालयों व शालाओं में पढ़ाई जाने वाली हिन्दी ने वैश्विक दर्जा प्राप्त कर इसको अवसान की ओर धकेलने वाले विद्रोही स्वरों पर ताला लगा दिया। अभिजात्य वर्ग के लोग, जिनकी गुलामों की भाषा बनी अंग्रेजी के दबे तले हिन्दी की हिन्दी करके इसे ज्ञान-विज्ञान की भाषा नहीं मानते हैं, कहानी,कविता,कथा की भाषा मानकर इसके प्रति नफरत,उपेक्षा,वैचारिगी जतलाते हुये तिल भर भी आत्मग्लानि नही करते, उन्हें इसकी सामर्थ्य शक्ति, समृद्धि, प्रतिष्ठा और सर्वव्यापकता समझ आने लगी हैं।

अपनी संप्रेषण कला का माध्यम बनी हिन्दी भाषा के विषय में प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल जी का कहना हैं कि जब हम किसी भाषा की विकास प्रक्रिया की चर्चा करते हैं तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि भाषा का विस्तार कोई जड़ नहीं अपितु एक विकासशील प्रक्रिया हैं जो निरंतरता में होती हैं। क्योकि संस्कृति व सभ्यता की वाहक और समय के साथ रंग बदलती हिन्दी भाषा ने लोकोपयोगी एवं जनोपयोगी बनने के लिए अन्य भाषाओं के शब्दों को अंगीकृत कर ना केवल अपने कोष को समृद्ध बनाया हैं बल्कि बन्धनहीन होकर सात समंदर पार अपनी ख्याति विस्तारित की और दिलों तक पहुंचने का माध्यम बनी। 


उपेक्षित क्षेत्रों में भी अपना बोलवाला करता हिन्दी भाषा जो अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिला-जुला रूप हैं, ने दक्षिण प्रशस्त महासागर के मेलानेशिया में फिजी नाम के द्वीप में आधिकारिक तौर पर दर्जा प्राप्त कर लिया हैं। रग-रग में रची बसी, भारत की आन-वान हिन्दी ने तकनीकि क्षेत्र में अपने पांव जमाने में कामयाब हुई। एक तरफ जहां इण्टरनेट पर हिन्दी भाषा 94% का बढ़ता प्रभाव विस्तृत हो रहा हैं वही 2015 में ट्वीटर में हिन्दी भाषा बनी और गूगल पर हिन्दी में सर्च करने वालों की अधिक विश्वसनीयता दर्शाती हैं। अमेरिका में तीसरी सबसे ज्यादा समझी जाने वाली हिन्दी भाषा हैं।

भूमंडलीय पटल पर अंतर्राष्ट्रीय भाषा बन रही हिन्दी को जो लोग बोझिल समझते हैं उन्हें सचेत हो जाना चाहिये कि वैज्ञानिक रिसर्च द्वारा सिद्ध हो चुका हैं कि मस्तिष्क के दोनों हिस्से देवनागरी में ऊपर-नीचे,दाएं-बाएं अक्षर और मात्राएं होने के कारण काम करते हैं जबकि अंग्रेजी भाषा में केवल बायां हिस्सा ही काम करता हैं। लखनऊ का बायोमेडिकल रिसर्च सेंटर कहता है कि हिन्दी पढ़ने से मस्तिष्क का विकास बेहतर तरीके से होता हैं। इसलिए अंग्रेजी भाषा को आवश्यकता होने पर ग्रहण कीजिए ना कि हजारों वर्षों की विरासत को संचित कर पोषित करती व हमारे अस्तित्व का हिस्सा बनी हिन्दी को अधिग्रहण ना करके। संस्कारों से समृद्ध हिन्दी के प्रति विवादास्पद बयानों का पैमाना इस बात से ही निराधार हो जाता हैं जिसमें अंतर्राष्ट्रीय संबंध शिक्षा संस्थान ने हिन्दी भाषा को अंतरराष्ट्रीय मामलों में अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए पांच भाषाओं में स्थान दिया।

वैश्विक फलक पर वर्चस्व स्थापित करती हिन्दी को सन् 1685 में जाॅन केटलर ने हिन्दी सीखकर डच भाषा में एक व्याकरण की रचना की।इसकी प्रभुत्वत्ता का अनुमान इसी बात से लगाया जाता हैं कि 1950-1980 के दशक तक जापान में सभी हिन्दी फिल्मों गानों का जापानी भाषा में अनुवाद किया और चीन की दीवार के शिलालेख पर हिन्दी में 'ओम नमो भगवते' लिखा है। सन् 1608 में पहले ब्रिटिश जहाज के व्यापारी हाकिंस ने सूरत के समुद्र तट पर सम्राट जहांगीर से हिन्दी में बात की।

विभिन्न माध्यमों से संप्रेषण कला का माध्यम बनकर सर्वव्यापी हुई हिन्दी निरंतर तीव्रता के साथ अग्रसर हो रही हैं। इसकी विकासयात्रा की शुरुआत 19वी सदी में अपनी भाषा में हिन्दवी का उल्लेख करने वाले अमीर खुसरो के जमाने से ही प्रगतिशीलता की और बढ़ी। हिन्दी समृद्धि का दायित्व बताने वाली चित्रा मुद्गल का कहना हैं कि हिन्दी अब कागज, कलम और किताब से निकलकर स्क्रीन पर आ जाने के कारण युवाओं की बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि वे तकनीकि इस्तेमाल में समृद्ध और विकास में सहयोग दें। हम सबको इसके संवर्धन और संरक्षण में आ रहे अवरोधों के प्रति कारगर और ठोस कदम उठाकर ही इसके प्रति मानसिक संकीर्णता के अंधकारमय परिदृश्य से उबार पाएंगे। निरंतर प्रगतिपथ पर कदम बढ़ाती हिन्दी भाषा पर अमीर खुसरो का उदाहरण -
'खुसरो सरीर सराय हैं, क्यों सोवे सुख चैन।
'कूच नगारा सांस का, बजत हैं दिन नैन।।

अंततोगत्वा वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता मिलने पर भी हिन्दी भाषा के सामने कई चुनौतियां हैं। व्यक्तित्व की शान और वर्तमान समय की जरूरत अंग्रेजी भाषा के कारण हिन्दी भाषा का दर्जा निम्न वर्ग तक रह गया हैं। अखिल भारतीय रूप इसका स्वयं अर्जित हैं। ऐतिहासिक प्रक्रिया व विस्तृत क्षेत्र और राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने पर भी इसके प्रचार-प्रसार में अंग्रेजी भाषा आड़े आ रही हैं। देश-विदेशों में अपना परचम फहराती हिन्दी ने सूर्योदय कर जन-जन में अपना प्रकाश फैला दिया हैं बस जरूरत हैं,अंग्रेजी दासता से मुक्त होकर खुले दिल से हिन्दी में हस्ताक्षर करने के लिए खुले दिल से व्यवहारिकता में लाकर आगे हाथ बढ़ाना होगा। क्योंकि कदम से कदम बढ़ाकर आगे चलने से ही अपनत्व की भावना, गौरवान्वित होने का एहसास करा सकते हैं और इसको विस्तार देकर समूचे विश्व में पंख पसारकर लोगों के अंतर्मन में पल्लवित किया जा सकता हैं। निराधार बोझ समझने वालों की आशंकाओं का समाधान कर मानसिकता को बदला जा सकता हैं। देश की संस्कृति व सभ्यता की वाहक हिन्दी के प्रसार के लिए चेतना व चिन्तन कर गरिमा बनाये रखनी होगी।

यह भी कटु सत्य है कि अंग्रेजी भाषा अंतर्राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त सकारात्मक भाषा होने के कारण इसके बिना काम नहीं चल सकता। भाषा का सामाजिक स्तर बन जरूर गया हैं पर प्रगति, आत्मसंतुष्टि और सरल,सहज संप्रेषित का माध्यम हिन्दी से ही मिला हैं,मिल रहा हैं और मिलता रहेगा।

स्वरचित व अप्रकाशित हैं। 

बबीता गुप्ता 

Views: 872

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 23, 2021 at 7:13pm

आदरणीया बबिता जी, आपके आलेख को एक बार में पढ़ गया. इस प्रयास के लिए बधाई. 

लेकिन कुछ सुझाव आवश्यक है कि साझा करूँ. 

सर्वप्रथम तो जिस विषय में आप लेख लिख रही हैं, उसका प्रस्तुतीकरण स्पष्ट तथा संप्रेषणीय हो. आप अपने आलेख को अभी देख कर उचित रूप से समझ सकती हैं. 

दूसरे, आप जिस विषय पर लिखें उससे सम्बन्धित मूलभूत जानकारी अवश्य प्राप्त कर लें. बिना समीचीन जानकारी के कोई आलेख कच्ची-पक्की सूचनाओं का जमावड़ा मात्र ही हो कर रह जाएगा. जैसा कि इस लेख के साथ हुआ है.  हम नए लेखकों को प्रोत्साहित तो करते हैं. लेकिन ओबीओ कुछ भी लिख कर पोस्ट कर देने को प्रोत्साहन नहीं देता. 

आपके कई तथ्य मुझे स्पष्ट नहीं हो रहे.  यथा,

//भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने 2006 में दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस की घोषणा की जाने के साथ ही विदेशों में भारतीय दूतावास इस दिवस पर विभिन्न विषयों पर हिन्दी में कार्यक्रम आयोजित करते हुये विशेष आयोजन करते हैं  .. .. ..  इसी परिप्रेक्ष्य में नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी,1975 में मनाया गया जिसमें तीस देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुये थे। और नार्वे में पहला विश्व हिन्दी दिवस भारतीय दूतावास ने मनाया था और दूसरा व तीसरा भारतीय नार्वे सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल जी की अध्यक्षता में बहुत ही धूम-धाम से मनाया गया।//

आप बताइए, इस पाराग्राफ से क्या सूचना मिलती है ? 

इसी परिप्रेक्ष्य में का अर्थ यह होता है कि कोई चलती हुई घटना के आगे अन्य कार्यक्रम का आयोजित होना. यदि ऐसा है तो 2006 के बाद 1975 कैसे आया ? 

//उपेक्षित क्षेत्रों में भी अपना बोलवाला करता हिन्दी भाषा जो अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिला-जुला रूप हैं, ने दक्षिण प्रशस्त महासागर के मेलानेशिया में फिजी नाम के द्वीप में आधिकारिक तौर पर दर्जा प्राप्त कर लिया हैं // 

ये उपेक्षित क्षेत्र   कौन से होते हैं ? और ऐसे क्षेत्रों में हिन्दी का बोलबाला  है ? फिर क्या हिन्दी भाषाभाषी उपेक्षित क्षेत्र हैं ? यदि ऐसा है, तो इस मानसिकता से जितनी शीघ्रता से निकल जायँ, श्रेयस्स्कर होगा. 

 

लेकिन मेरा सवाल इस वाक्य के उस विस्तार से है जहाँ हिन्दी को अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिला-जुला रूप  कहा गया है. यह जानकारी न केवल गलत है, भ्रामक भी है. यह दर्शाता है कि आपने भाषाशास्त्र को बिना जाने बस आलेख प्रस्तुत कर दिया है. अवधी का व्याकरण भोजपुरी के व्याकरण से भिन्न है. दोनों भाषाओं के व्याकरण हिन्दी के व्याकरण से सर्वथा भिन्न हैं. कुछ शब्दों के पारस्परिक उपयोग किये जाने से कोई भाषा समान नहीं हो जाती. हिन्दी, अवधी तथा भोजपुरी के उत्स भिन्न हैं इसी कारण व्याकरण भी भिन्न है. यह अवश्य है कि हिन्दी भाषाभाषी एक वर्ग ऐसी वाहियात अवधारणाओं को हवा देता रहता है. आप ऐसी किसी अवधारणाओं या मतों से बचें. आपको मालूम होना चाहिए कि बोली और भाषा के कृत्रिम अंतर से आमजन बहुत-बहुत भरमाया जाता रहा है. 

बहरहाल आपके आलेख के लिए धन्यवाद. 

शुभातिशुभ

 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 14, 2021 at 6:17pm

मुहतरमा बबीता जी, हिन्दी दिवस के अवसर पर अच्छा लेख प्रस्तुत किया है आपने, बधाई स्वीकार करें।  सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 14, 2021 at 5:51pm

आ. बबीता बहन, सादर अभिवादन। हिन्दी दिवस पर सारगर्भित आलेख हुआ है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
9 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
21 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
23 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service