For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 212

1

उनकी आँखों में उतर कर ख़ुद को देखा है कहाँ

हक़ अभी तक उनके दिल पर इतना अपना है कहाँ

2

आदतें यूँ तो मिलेंगी एक सी लोगों में पर

उनके दिल में एक सा एहसास होता है कहाँ

3

है लड़ाई ख़ुद से अपनी है बग़ावत ख़ुद ही से

बात इतनी सी ज़माना भी समझता है कहाँ

4

चारदीवारी में घर की साथ तो रहते हैं सब

ज़ाविया पर उनके दिल का एक जैसा है कहाँ

5

देख लिया गल कर पसीने में भी हमने रात दिन

बदले में मेहनत के पूरा पैसा मिलता है कहाँ

6

उसके दर पर माँगने से पहले इतना सोच लो

अपना फ़ुर्सत ए शौक़ तुमने यार रक्खा है कहाँ

7

उसके होटों का पियाला पी तो लूँ "निर्मल" मगर

प्यार इतना उसके दिल पर मुझको आता है कहाँ

मौलिक व अप्रकाशित

रचना निर्मल

Views: 900

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on August 3, 2021 at 6:25pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर्,आपके द्वारा दी गई अनमोल इस्लाह के लिए आपकी आभारी हूँ। जी सर, मैं अपने साथियों की भी आभारी हूँ जिन्होंने ग़ज़ल ठीक करने में मदद की।

आवश्यक सुधार फेयर में कर लेती हूँ।

सादर।

 

Comment by Samar kabeer on August 3, 2021 at 4:01pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, और गुणीजनों ने सुझाव भी अच्छे दिये हैं, बधाई स्वीकार करें ।

'आदतें यूँ तो मिलेंगी एक सी लोगों में पर

उनके दिल में एक सा एहसास होता है कहाँ'

ऊला मिसरे में भाई धामी जी के सुझाव के मुताबिक़ 'में' की जगह 'की' करना उचित होगा,और सानी में 'उनके' की जगह "सबके" करना उचित होगा ।

'बात इतनी सी ज़माना भी समझता है कहाँ'

इस मिसरे में 'भी' की जगह "ये" करना उचित होगा ।

'ज़ाविया पर उनके दिल का एक जैसा है कहाँ'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'ज़ाविया उनकी नज़र का एक जैसा है कहाँ'

'देख लिया गल कर पसीने में भी हमने रात दिन

बदले में मेहनत के पूरा पैसा मिलता है कहाँ'

इस शैर का ऊला यूँ कह सकती हैं:-

'हमने देखा है पसीने  में भी गल कर दोस्तो'

और सानी में 'मेहनत' को "मिहनत" लिखें ।

'उसके दर पर माँगने से पहले इतना सोच लो

अपना फ़ुर्सत ए शौक़ तुमने यार रक्खा है कहाँ'

इस शैर को यूँ कह सकती हैं:-

'माँग ले जो चाहे उससे रात के पिछले पहर

सब तुझे दे देगा बंदे ऐसा दाता है कहाँ'

Comment by Rachna Bhatia on August 3, 2021 at 12:52pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर्,6 इस तरह से कर सकते हैं क्या

उसके दर पर माँगने से पहले इतना सोचना

मन अभी ख़ुद-ग़र्ज़ी से तुमने हटाया है कहाँ

सादर।

पूरी ग़ज़ल पर आपकी इस्लाह का इंतज़ार है। सादर।

Comment by Rachna Bhatia on August 2, 2021 at 8:39pm

आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार। अच्छा सुझाव है।

आभार।

बस..एक बार समर कबीर सर् की इस्लाह आ जाए तो फेयर में सुधार कर लेती हूँ।

सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 2, 2021 at 4:42pm

मुहतरमा 'निर्मल' जी, लक्ष्मण धामी जी ने अच्छी तरमीम सुझाई है, छठा शे'र अगर आपकी भावना के अनुरूप हो तो यूँ कर सकते हैं-

उसके दर पर माँगने से पहले भी क्या सोचना 

बे झिझक चाहे जो माँगो ऐसा दाता है कहाँ        सादर। 

Comment by Rachna Bhatia on August 2, 2021 at 12:47pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई नमस्कार। आपने अच्छा सुझाव दिया । आभार। भाई,6 के लिए भी सुझाव दें। सादर।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2021 at 12:29pm

आ. रचना बहन, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई। 

बेबह्र मिसरे को चाहें तो यूँ कर सकती है-
#हमने देखा/है पसीने/में भी गलकर/रात दिन
# आदतें यूँ तो मिलेंगी एक सी लोगों में पर

यह मिसरा ठीक है क्योंकि" पर" यहाँ "किन्तु" के अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है । फिर भी बदलाव चाहें तो में को "की" लिखकर ठीक किया जा सकता है।

Comment by Rachna Bhatia on August 2, 2021 at 11:35am

आदरणीय चेतन प्रकाश जी नमस्कार। हौसला बढ़ाने के लिए आभार। जी, आदरणीय,इन कमियों को दूर करने का प्रयास करती हूँ।सादर

Comment by Rachna Bhatia on August 2, 2021 at 11:33am

आदरणीय अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार।जी

, मुझसे तक़्तीअ ग़लत हो गई है।

देखें

"रात दिन गल कर पसीने में भी हमने देखा है"

यह सही है क्या

दूसरा भी सुधार कर के दिखाती हूँ। सादर

Comment by Chetan Prakash on August 2, 2021 at 9:32am

आदरेया 'निर्मल जी., नमस्कार! ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया है, आपने और विकास यात्रा भी संतोषजनक है! लेकिन किन्हीं बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करना परम   आवश्यक है! यथा, आदरणीय समर कबीर साहब अनेक बार बता चुके हैं कि  दो सम्बन्ध बोधक अव्यय एक साथ नहीं आ सकते! जैसे शे'र दो का ऊला, " आदतें तो यूँ मिलेगी एक सी लोगों में पर" , यहाँ माननीया, में और पर दोनों समबंध बोधक अव्यय हैं, साथ ही काम दोनों का एक है! अत: एक भर्ती का है, एक ज़रूरी! शे'र न०. ४ में तो आदरणीय समर कबीर साहब 'साथ' के साथ, अन्य अव्यय ग़लत बता चुके हैं! सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
13 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service