For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा- खाली गमला

मिश्रा जी यूं तो बैंक से रिटायर हुए थे, लेकिन रिटायरमेंट के बाद उन्होंने पूरी तरह से अपने जीवन को वृक्षारोपण के लिए समर्पित कर दिया, इसलिए लोगों के लिए उनका परिचय था " वही जो पेड़ लगाते हैं"। घर के पास स्थित राधा कृष्ण मंदिर में भी उन्होंने कई पेड़ लगाए थे, जब तक उनका लगाया पौधा पूरी तरह से बड़ा न हो जाता, तब तक उसकी देखभाल के लिए जाया करते थे। पार्कों में, रोड साइड पर, अपने स्कूटर पर पानी के जरीकेन रखकर ले जाते थे और पौधों में पानी डालते थे, बाद में पैदल ही जाने लगे। कभी-कभी आसपास के घरवालों को बोल देते थे, लेकिन स्वयं अपने पौधों को देखने जरूर जाते। इसी का परिणाम था कि 10 सालों बाद उनके लगाये बहुत से बेल, नीम, पीपल के पेड़ जगह-जगह छाया दे रहे थे; सड़क किनारे कहीं-कहीं उसके नीचे ठेले, कुम्हारों की दुकानें, किसी प्रेस वाले का खोखा या कहीं रिक्शेवाले खड़े होते थे।
मिश्रा जी का राधा कृष्ण मंदिर जाने का रोज का नियम था; असल में वह भगवत गीता के उपदेश “मनुष्य पर ही देव, पितर, पशु ,पक्षी ,वृक्ष सबकी रक्षा का दायित्व है” इसका पालन करते थे। मंदिर में वह तुलसी के छोटे-छोटे पौधे कुल्हड़ में लगाकर रख आते थे, ताकि किसी को आवश्यकता हो तो वहां से ले जाए। अलावा इसके उन्होंने कुछ गमले भी लाकर मंदिर में रखे थे, भगवान पर अर्पित करने के लिए ताजा गुलाब के फूल मिल सके और मंदिर सुंदर दिखे, इसके लिए उन्होंने वहां गुलाब लगाए।
कई बार ऐसा हुआ कि उनको वह गमला गायब मिला और उसकी जगह दूसरा खाली गमला रखा था, कभी-कभी तो वह भी नहीं। उन्होंने पुजारी जी से जानकारी की, तो पता चला सामने के घर में रहने वाली कोई महिला ऐसा करती थी।
एक दिन तो जब मिश्रा जी फिर से गुलाब का एक गमला मंदिर में रख रहे थे, वही महिला सामने से आई और बोली "अंकल जी मैं यह गमला ले जाऊं इसकी जगह मैं दूसरा गमला रख दूंगी..."
मिश्रा जी के मुंह में बोल न आया, अंतर्मुखी व्यक्ति थे, दूसरे सामने एक महिला थी। मन में कई प्रश्न उठे, पर बिना कुछ बोले घर वापस आ गए। दूसरे दिन जब मंदिर गये, तो फूलों से भरा गमला नदारद, एक खाली गमला उसके स्थान पर रखा मिला।

मौलिक व अप्रकाशित

डॉ वन्दना मिश्रा, लखनऊ।

Views: 736

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Vandana Misra on December 11, 2020 at 12:02am
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय !
Comment by Dr Vandana Misra on December 11, 2020 at 12:01am
Samar kabeer जी, प्रेरक टिप्पणी एवं सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय !
Comment by Dr Vandana Misra on December 10, 2020 at 11:59pm
Dr. Vijai Shanker जी, प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2020 at 12:32pm

आ. वंदना जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 30, 2020 at 5:37pm

मुहतरमा डॉ. वंदना मिश्रा जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 30, 2020 at 11:36am

शुभ प्रयास में सहयोग का अपना तरीका। कहानी प्रेरक है। बधाई , आदरणीय सुश्री डॉo वंदना मिश्रा जी , सादर।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 30, 2020 at 2:53am

आदाब। अप्रत्यक्ष रूप से 'खाली गमलों'के माध्यम से गंभीर बातें कहती बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आ. डॉ. वन्दना मिश्रा जी। विवरण की बातें समुचित कम शब्दों में भी या सांकेतिक रूप से भी कही जा सकती हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service