For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे - ग़ज़ल

सागर से भी गहरे देखे.

जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे.

 

नए दौर में नई सदी में,

साँसों पर भी पहरे देखे. 

 

गांधी जी के तीनों बंदर, 

अंधे गूँगे बहरे देखे.

 

अंदर कुछ थे बाहर से कुछ,

हमने जितने चेहरे देखे.

 

कुछ आँसू मरते आँखों में,

कुछ पलकों पर ठहरे देखे. 

 

नीड़ बनाते देखे पंछी,

पढ़ते नहीं ककहरे देखे

 

नीचे नंगी भूख बिलखती,

ऊपर झंडे फहरे देखे.

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 915

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 23, 2020 at 5:13pm

आदरणीय Rupam kumar -'मीत' जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 16, 2020 at 12:36pm

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी सादर नमस्कार 

आपका सुझाव अनुकरणीय है , सादर स्वागत है 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2020 at 11:50am

आ. बसंत कुमार जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है .. बधाई स्वीकार करें.. 
मतले में रब्त कम है.. गहरे और सुनहरे में कोई तार्किक समानता नहीं नज़र आती ..
इसे यूँ कर के देखें..
"जब भी ख़ाब सुनहरे देखे 
सहरा जैसे ठहरे देखे..."
इस में धूप में तपती सुनहरी रेत और का सम्बन्ध भी है और काफ़िया भी..
यह सिर्फ आग्रह है.. ग़ज़ल के लिए पुन: बधाई  

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 16, 2020 at 11:47am

 आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार-

अरे कोई बात नहीं , कभी कभी ऐसा हो जाता है, आपकी इस्लाह सदैव अनुकरणीय होती है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है 

आपका स्नेह सदा मिलता रहे यही कामना है, सादर नमन आपको 

Comment by Samar kabeer on October 15, 2020 at 9:08pm

मुआफ़ कीजियेगा नज़र कमज़ोर है रदीफ़ देखे की जगह देखो हो गई, आपका मतला जैसा है वैसा ही रखें ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 15, 2020 at 5:57pm

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई एवं तरमीम का दिल से शुक्रिया 

आपका सुझाव तो बहुत अच्छा है लेकिन अन्य अशआर में निभ नहीं रहा है 

'जब तुम ख़्वाब सुनहरे देखो'

शायद 

'सागर से भी गहरे देखे.

जितने ख़्वाब सुनहरे देखे' या 

जो-जो ख़्वाब सुनहरे देखे' किया जा सकता है 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 15, 2020 at 5:54pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई एवं तरमीम का दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on October 15, 2020 at 5:53pm

आदरणीय Deepalee Thakur जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by Samar kabeer on October 15, 2020 at 3:44pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'सागर से भी गहरे देखे.

जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे'

मतले के दोनों मिसरो में रब्त की कमी नहीं,हाँ इसे और साफ़ करने के लिये सानी यूँ किया जा सकता है:-

'जब तुम ख़्वाब सुनहरे देखो'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2020 at 8:06pm

आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, बहतरीन ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, बस मतले में जब-जब की वजह से रब्त टूट रहा है, जब-जब की जगह जितने करने से रब्त क़ायम हो सकता है। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण भाईजी, आपने प्रदत्त चित्र के मर्म को समझा और तदनुरूप आपने भाव को शाब्दिक भी…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
yesterday
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service