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"खोटा साजन" - [लघुकथा] 31 __शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"खोटा साजन" - (लघुकथा)

"ठीक है कि तुम माँ-बाप पर बोझ नहीं हो, प्राइवेट स्कूल से कुछ कमा लेती हो, लेकिन अब तुम्हें पति के साथ ही रहना चाहिए।" - विनीता ने अपनी खास सहेली शाहीन को समझाते हुये कहा।

बड़े सपने देखने वाली शाहीन इस रिश्ते से ऊब चुकी थी। नम आँखों के साथ उसने कहा - "मुझे क्या पता था कि कोई पोस्ट-ग्रेजुएट आदमी भी साइकिल छाप निकलेगा।मैं इस रिश्ते के लिए सिर्फ इसलिए राजी हुई थी कि उन में क़ाबीलियत देखी सबने। सोचा सरकारी नौकरी लग ही जायेगी । लेकिन वे तो राजा हरीश्चंद्र बने फिरते रहेंगे, न नौकरी, न धंधा कर सकेंगे । मैं नहीं रह सकती उस गांधी जी के साथ, बस !"

"देखो शाहीन, अपना वैवाहिक जीवन यूँ बरबाद मत करो । तुम दोनों मिलकर कोचिंग या ट्यूशन कर सकते हो या ससुराल में ही कोई प्राइवेट स्कूल ज्वाईन कर लेना !"

" यार , एक ही मसला नहीं है ! कहां मैं नये ज़माने की लड़की और कहां वो नमाज़ी-परहेज़ी, ऊपर से शेरो-शायरी और रोज़-रोज़ के मज़हबी प्रवचन, आदर्शवाद के तिहाड़ जेल में कैसे रह पाऊंगी मैं !" - कुछ उत्तेजित होते हुए शाहीन बोली - "मैं पाबंदी, रोक-टोक पसंद नहीं करती ! हमने तो कहलवा दिया है कि काज़ी साहब को बुला लें, उनकी तरफ़ के पाँच और हमारी तरफ़ के पाँच रिश्तेदार एक दिन बैठ कर छोड़-छुट्टी करा लें !"

"सब समझ गई मैं" - हारते हुए विनीता ने कहा - "कसूर तुम्हारा नहीं, तुम्हारी परवरिश और तुम्हारे माँ-बाप का है जिन्होंने लड़के का सिर्फ़ अच्छा ख़ानदान देखा, नौकरी, धन-दौलत और तुम्हारी पसंद को नज़रअंदाज़ करते हुए ! तुम्हें समझ आयेगी तो, लेकिन बहुत देर से ! "

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:27am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:22am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 4:22am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 14, 2015 at 7:04pm
आदरणीय बैजनाथ शर्मा 'मिन्टू' जी, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, व आदरणीय सुनील वर्मा जी समसामयिक विषयांतर्गत कथा के मर्म को समझते हुए संदेश की प्रशंसा करने व लेखनी को प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी को ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 14, 2015 at 7:04pm
आदरणीय बैजनाथ शर्मा 'मिन्टू' जी, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, व आदरणीय सुनील वर्मा जी समसामयिक विषयांतर्गत कथा के मर्म को समझते हुए संदेश की प्रशंसा करने व लेखनी को प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी को ।
Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 13, 2015 at 2:03pm

आदरणीय उस्मानी साहेब, वर्तमान समय व परिवेश को उजागर करनेवाली  अच्छी व सटीक लघुकथा .......खूब - खूब बधाई|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 12, 2015 at 11:22pm

आदरणीय उस्मानी जी सटीक लघुकथा हुई है. अपने कथ्य के मर्म को शाब्दिक करने में सफल लघुकथा .... हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 12, 2015 at 4:36pm
रचना पर उपस्थित हो कर त्वरित प्रतिक्रिया देने व कथा के संदेश का समर्थन करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय Tej Veer Singh जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 11, 2015 at 6:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!घर घर में बच्चों का आचरण बिगडता जा रहा है!मॉ बाप असहाय महसूस करते हैं!बच्चे दिन पर दिन स्वेच्छाचारी हो रहे हैं!शानदार लघुकथा!

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