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प्रेम पचीसी --भाग 3 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग-3 (प्रीत-पगे दोहे)
दाँत दुखे तो पाड़ दूँ, आँख दुखे दूँ फोड़ ।
घायल मन की पीर का, पास पिया के तोड़ ।। ...1

झाल बदन में उठ रही, जबसे लागी लाग ।
सावन बरसे नैन से, बुझे न फिर भी आग ।। ...2

होना था सो हो गया, अब तो करो उपाय ।
बाहर-भीतर आग है, पीड़ा सही न जाय ।। ...3

रोग लगा सो लग गया, छोड़ो सोच-विचार ।
अंग-अंग काटो भले, ढूँढ़ों कुछ उपचार ।। ...4

ज्यों-ज्यों करती हूँ दवा, त्यों-त्यों बढ़ता रोग ।
बैद बनो तुम साँवरे, कब बैठेगा जोग ।। ...5

मेरे मन की आस तो, अनहोनी सी बात ।
चाह जगी है धूप की, माँझिल आधी रात ।। ...6

चहुँदिश अँधियारा घना, नज़र न आए राह ।
उल्फ़त एक सुरंग है, भटक रही है चाह ।। ...7

जोर जताऊँ क्यों सजन, लागूँ तुमरी कौन ।
मन में रखती चाह को, जड़कर ताला मौन । ।...8

दुविधा के किस जाल में, उलझ गया है जीव ।
पीव गँवाकर ज़िन्दगी, जान गँवाकर पीव ।। ...9

क्या तुमको अनुभव हुआ, मेरे मन का हेत ।
मौन तुम्हारा चुभ रहा, कुछ तो दो संकेत ।। ...10

तुम धनियों का ठाठ हो, मैं निर्धन की आह ।
मौज करो तुम रात-दिन, मेरा कठिन निबाह ।। ...11

तुम रेशम का थान हो, फटा हुआ मैं टाट ।
तुम देवों के तन चढ़ो, मुझे बिछाए भाट ।। ...12

साजन तुम पावन बड़े, मैं पतिता कुल नीच ।
तुम गंगा की धार हो, मैं सड़कों का कीच ।। ...13

साजन मैं हूँ कोयला, तुम हीरा अनमोल ।
तुमरी लागे बोलियाँ, मेरा कौड़ी तोल ।। ... 14

तुम मेरे मालिक सजन, मैं हूँ तुमरा माल ।
बीच बजरिया बेच दो, मेरा दाम उछाल ।।...15

तुम चंदन की पोटली, महको चारों ओर ।
मैं गलियों की धूल हूँ , होड़ करूँ क्या तोर ।। ...16

खुलना था सो खुल गया, मेरे मन का भेद ।
पाप न समझा प्रेम को, शर्म न कोई खेद ।।...16


पीव निपट मैं बावरी, तुम हो चतुर सुजान ।
मुझ पर सारा जग हँसे, तुमरा जग में मान ।। ...17

तुम फूलों की बेल हो, मैं काँटों का झाड़ ।
तुम हो घर की शोभना, मेरा बास उजाड़ ।। ...18

ताड़ सको तो ताड़ लो, मेरे मन का चोर ।
मुझको जग का डर नहीं, लाख मचाओ शोर ।। ...19

प्रेम न होता सौ दफ़ा, मीत न होते दोय ।
इक चंदा की चाँदनी, देख चकोरा रोय ।। ...20

कितनी भागमभाग थी, कितने सारे काम ।
प्रेम निकम्मा कर गया, रटता हूँ बस नाम ।। ...21

जग में हाँसी हो गई, मिला न मन का मीत ।
गलियों का किस्सा बनी, मेरी पागल प्रीत । । ...22

तुम महलों की रौशनी, मैं कुटिया का दीप ।
तुम हो मोती कीमती, मैं इक फूटा सीप ।। ...23

तुम पारस हो साँवरे, मैं लौहे का ढेर ।
झट मुझको कंचन करो, क्यों करते हो देर ।। ...24

साजन तुम गुणवान हो, मैं अवगुण का पोट ।
तुमरा हर गुण लाख का, मुझमें लाखों खोट ।। ...25
मौलिक एवम् अप्रकाशित ।
©खुरशीद खैराड़ी , जोधपुर 9413408422

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Comment by khursheed khairadi on September 7, 2017 at 6:56am
आदरणीय सौरभ सर आपका आशीर्वाद एवम् मार्गदर्शन ही मेरे पथ का पाथेय है। ओ बी ओ मंच का प्रेम मेरी लेखनी का संबल है।
आदरणीय गजेन्द्र सर,लक्ष्मण सर,समर सर,आरिफ़ साहब् ,सुशील सर आप सभी का सादर आभार।
Comment by Gajendra shrotriya on September 6, 2017 at 1:07pm
आ० खुर्शीद खेराड़ी साहब सादर अभिवादन। प्रेमपचीसी की ये तीसरी किश्त भी पहली और दूसरी की तरह ही प्रेमरस से सिक्त है योग,वियोग,करूणा,समर्पण और अध्यात्म के विभिन्न रंग बिखेर दिए हैं आपने। काबिले-तारीफ काम है आपका। उम्मीद है प्रेमपचीसी की ये श्रंखला अनवरत बढ़ती रहेगी। मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2017 at 11:33pm
अनुपम दोहावली । हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on September 5, 2017 at 9:27pm
जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदाब,भाग 3 भी बहुत ख़ूब और लाजवाब दोहे,इस प्रस्तुति पर भी दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on September 5, 2017 at 6:15pm

वाह आदरणीय खुर्शीद साहिब वाह। . प्रेम पचीसी का हर दोहा प्रेम की दिलकश तस्वीर पेश करता है।  हर दोहा अनमोल है।  इस दिलकश प्रस्तुती के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें सर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2017 at 3:30pm

अद्भुत ! अद्भुत !! .. हीरे की एक-एक कनी सवा लाख की.. !! 

इस भाव-निवेदन की एक लम्बी परम्परा रही है..  तुम तरुवर मैं पात रे.. की शैली में स्वयं के सर्वस्व को उड़ेल देने की ललक को सदियों मान मिलता रहा है. यही द्वैत के मूल में भी है. लेकिन अपनी हीनता का बखान भक्ति के अन्यतम स्वरूप से अन्यतम को पाने का ऐसा माध्यम नवधा की प्रक्रिया के कहीं आगे ले जाता है.

आपकी इस प्रस्तुति पर हृदय से बधाइयाँ दे रहा हूँ. .. हार्दिक शुभेच्छाएँ 

शुभ-शुभ

Comment by Mohammed Arif on September 5, 2017 at 11:14am
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आदाब, प्रेम की घनीभूत व्यंजना प्रकट करने में दोहे अपने पिछले दोहों की तुलना में पिछड़ गए हैं । बधाई स्वीकार करें ।

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