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'ग़ालिब' की ज़मीन में ग़ज़ल नम्बर 2'

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन

लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा

उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा

हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को

मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा

जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो

अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा

जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो

अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा

शुक्र तेरा करें किस मुंह से बता ऐ यारब

तूने चाहत की रसन से हमें शामिल बाँधा

तुझ पे क़ुर्बान मुसव्विर तेरे फ़न पर क़ुरबाँ

तूने मंज़र मेरे मिट जाने का तिल-तिल बाँधा

कर्बला वालों की तारीख़ "समर" याद आई

उसने जब तिश्ना लबों को लब-ए-साहिल बाँधा

-----

मलाइक--फ़रिश्ते

फ़लक--आकाश

मह-ए-कामिल--पूरा चाँद

रसन--रस्सी

मुसव्विर--चित्रकार

तिश्ना लबों--प्यासों

लब-ए-साहिल--किनारे

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 28, 2018 at 9:53am

वाह वाह लाजबाब गजल हुई है, एक से बढ़कर एक शेर, बहु बहुत बधाई आपको 

Comment by नाथ सोनांचली on March 28, 2018 at 4:03am

आद0 आली जनाब समर साहब सादर प्रणाम। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने।

जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो

अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा

वाह वाह,

जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो

अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा

क्या कहने ,

कर्बला वालों की तारीख़ "समर" याद आई

उसने जब तिश्ना लबों को लब-ए-साहिल बाँधा

बाकमाल।

मतले से लेकर मकते तक सभी शैर उम्दा। शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल पेश करता हूँ।

Comment by Harash Mahajan on March 27, 2018 at 7:55pm

आदरणीय समर जी आदाब । बहुत ही बेहतरीन मतला सर।

...लोग हैराँ थे

...रग ए जाँ.....कितना खूबसूरत गहरा और दिलकश ।

हर शेर पर रुकने को मजबूर कर दिया आपने । 

"जल गए सितारे.....मह-ए-कामिल बाँधा"....बार बार पढ़ने का मन होता है ।

आपकी कलम को सलाम सर ।

सर उर्दू के अरकान लिखे हैं तो वक़्त ज़ियादा लगता है ज़ुबाँ पर आने में ।

आसानी के लिए हम 2122 2122 2122 22 से गुज़ार कर लेते हैं ।

सर वाह वाह के साथ अभी आपकी इस ग़ज़ल के साथ सफर पे हूँ ।

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2018 at 6:58pm

आ, समर सर,

वाह वाह वाह और वाह,

क्या खूब ग़ज़ल हुई है,, बहुत बहुत बधाई

आप की शान में इतना ही बस उस्ताद समर

आपने शेर जो बाँधा बड़ा मुश्किल बाँधा

सादर

Comment by Ajay Tiwari on March 27, 2018 at 4:15pm

आदरणीय समर साहब, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है. शेर सारे अच्छे है मगर  मतला और मक्ता तो लाजबाब है. हार्दिक बधाई .

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