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दीवारों में दरारें-2 सोमेश कुमार

साल पहले विद्यालय दफ्तर में

“सर, मैं अंदर आ सकती हूँ ?”

“बिल्कुल !” मि.सुरेश एक बार उस नवयुवती को ऊपर से नीचे तक देखते हैं और फिर उसकी तरफ प्रश्नसूचक निगाह से देखते हैं |

“सर ,मुझे इस स्कूल में नियुक्ति मिली है |” वो बोली

“बहुत बढ़िया !बैठो अभी प्रधानाचार्य आते हैं तो आपको ज्वाइन करवाते हैं |” प्रफुल्लतापूर्वक मि.सुरेश बोले

“वैसे कब और कहाँ से की है बी.एड.?” उन्होंने अगला सवाल किया

“इसी साल,कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से - -“उसने बड़ी सौम्यता से जवाब दिया

“अभी तो कॉन्ट्रैक्ट पर भर्ती किया होगा ?”

“जी सर |”

“क्या नाम है तुम्हारा ?”

“मीना गौतम |”

“वो Sअ  एस.सी. कोटे से हो !” कुछ-कुछ नाक उचकाते हुए बोलते हैं |

तभी प्रिंसिपल महोदय का प्रवेश होता है |

“लीजिए सर ,आपकी एक अध्यापक की कमी तो पूरी हुई |विभाग ने इन्हें भेजा है |”

“चुप्प करो ||इस लड़की को सफाईकर्मी के तौर पे भेजा गया है |कम से कम नियुक्ति पत्र तो देख लेते ”प्राचार्य श्री मदन श्रीवास्तव ने बिगड़ते हुए कहा |

“मुझे क्या मालूम !इसे बताना था ना - - -“झल्लाते हुए वो उस लड़की की तरफ देखते हैं और जाने के लिए उठते हैं |

“अब कहाँ चले ?चलो इसकी ज्वाईनिंग लिखो |”प्राचार्य ने आदेशात्मक भाषा में बोला

“ला,मीना अपना नियुक्ति आदेश दे |”मि.सुरेश बोले |

“ठीक है मीना,अब तुम आशा से मिल लो और अपना काम समझ लो |वो बाहर डेस्क पर बैठी है|और एक बात| गलत मत मानना पर|ये स्टाफरूम अध्यापकों के लिए है |” श्रीवास्तव जी ने नारजगी से कहा |

“आप जैसे लोगों की वजह से ये सिर चढ़ रहे हैं |इतनी हिम्मत की कुर्सी पर बैठ गई |”मि.सुरेश ने उस कुर्सी को टेबल से दूर करते हुए कहा |

कुछ देर बाद

“सुरेश जी,ये गैलरी में खड़ी नई सुन्दरी कौन है ?”सुरेश के क्लासरूम में घुसते हुए डबराल ने पूछा |

“हर जगह जीभ मत लपलपाया करो ,मिस्टर हिमेश रेशमिया ,वो भंगिन है,स्कूल की नई स्वीपर |”

“हाय!भगवान भी क्या नाइंसाफी करता है !ऐसी हूर और- - - !मेरी बीबी भी तो इसके आगे कुछ भी नहीं है |”

“जो भी हो इस लड़की से दूर ही रहना - --   |वैसे भी आजकल कानून भी इन्ही लोगों के पक्ष में है |”

“सुरेश सर,आपको प्रिंसिपल साहब ने बुलाया है |” आशा ने आकर व्यवधान डाला |

“सुरेश जी,विभाग से बड़े साहब का फ़ोन आया था |कह रहे थे कि मीना उनकी साली की लड़की है और विभाग अनुबंध अध्यापकों की सूची तैयार कर रहा है उसमें उसका भी नाम है|तब तक एडजस्ट करना है |”प्रिंसिपल ने मुँह लटकाते हुए कहा |

“अब साहब से पंगा तो ले नहीं सकते |तब तक इन्हें बिना पेपर के अपग्रेड कर देते हैं |सफ़ाई ना करवाकर उन्हें क्लास दे देते हैं |वैसे भी हाथी के पाँव में अपना पाँव ” मि.सुरेश ने सरल समाधान दिया

“खबर बाहर चली गई तो ?समझते हो ना ! लिखित में तो हमारे पास कुछ नहीं है |”

“ऑर्डर में स्वीपर की जगह पेपर पेस्ट करके टीचर लिख दो और फोटोस्टेट ले लो |जब पक्के आर्डर आ जाएँगे तो पेपर बदल देंगे |सैलरी बिल तो मुझे ही बनाना है |आप बेफिक्र रहें| ” मि.सुरेश ने धूर्ततापूर्वक मुस्काराते हुए कहा |

“बस इसीलिए मैं आपको गुरु मानता हूँ |अब उस लड़की को मना लाएँ |”

“आप बेफिक्र रहें,सर|”कहते हुए मि.सुरेश बाहर निकलते हैं

“बेटी मीना,अंदर चल - - -पहले क्यों नहीं बताया कि साहब तेरे - - - -“

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 12:57am

निधिं जी ,आपके अमूल्य सुझावों पर आभार |शब्दावली के सन्दर्भ में कहना चाहूँगा कि संस्मरण अपने पात्रों को उनकी क्षेत्रीय बोली के साथ और यहाँ की भाषाई संस्कृति के साथ समन्वयित करने का प्रयास है |दिल्ली के विद्यालय में अधिंकाश स्टाफ हरियाणा फिर राजस्थान और फिर बाकी उतरी भारत से है |दिल्ली देहात के स्कूल में हरियाणवी प्रभाव हावी होने के कारण पुराने अध्यापक हरियानवी मिश्रित हिंदी प्रयोग में लाते हैं |ऐसे में ठेठ बैठों और हेडमास्टर ,प्रिंसिपल जैसे शब्द आम तौर पे सुने-बोले जाते हैं |आपका भाषिक विश्लेषण शायद खड़ी बोली वाला देल्ह्वी अंदाज़ चाहता है पर शायद ये संसमरनण में मुझे उचित नहीं जान पड़ता |

आपकी गहन समीक्षा के लिए तहे दिल से साधूवाद 

Comment by somesh kumar on March 18, 2015 at 12:46am

आदरणीय गिरिराज सर ,गोपाल नारायण सर .एवं जितेंदर भाईजी मार्गदर्शनएवं  प्रशस्ति के लिए शुक्रिया |

Comment by Nidhi Agrawal on March 16, 2015 at 9:24am

ठीक है सर कथानक के लिए अब कोई कमेंट नहीं आएगा.. वैसे अगर ये लम्बी कहानी का भी छोटा संस्करण हो तो भी अपने आप में पूर्ण होना चाहिए .. भटकता हुआ लगता है .. लेकिन आपकी भाषा और शब्द संयोंजन पर भी काफी ध्यान देने की जरुरत है .. मैं डॉ. गोपाल जी के सुझावों से काफी हद तक सहमत हूँ .. अगर अतीत की बात है तो सिर्फ कहे हुवे वाक्यों में ही वर्तमान क्रिया आएगी .. बाकी हर जगह भूतकाल आएगा .. वो बोली की जगह उसने कहा .. " .. पहली बार में ऑफिस में आई किसी भी युवती से "बैठिये" कहा जाएगा.. प्रधानाचार्य आम बोलचाल की भाषा में नहीं कहा जाता तब जब आपने कुछ शब्दों के बाद "ज्वाइन" शब्द का प्रयोग किया है चल जाता अगर पूरा वाक्य शुद्ध हिंदी में होता .. अन्यथा साधारण तौर पर "प्रिंसिपल साहब" कहा जाता है .. ऐसी ही बहुत सारी बातें पढ़ते वक़्त खटकती हैं जिन्हें मैंने साझा करना उचित समझा .. अगर मेरी बातों को अन्यथा न लें. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 10:01pm

बिल्कुल !” मि.सुरेश एक बार उस नवयुवती को ऊपर से नीचे तक देखते हैं और फिर उसकी तरफ प्रश्नसूचक निगाह से देखते हैं |

प्रिय सोमेश

उक्त पंक्ति को ऐसे लिखे तो----

'बिलकुल'- मि० सुरेश ने उसके सुडौल शरीर को  ऊपर से नीचे तक निहारा  .

बिलकुल  में  ? कहाँ है ---------------------- और . मैंने प्रेजेंट इन्डेफनिट टेन्स  मना  किया था .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:49am

आदरणीय सोमेश भाई , समाज मे व्याप्त बहुत सी कमियों को आपने कथा के माध्यम से उजागर किया है ! हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 14, 2015 at 6:42pm

संस्मरण का यह अंश भी बढ़िया लगा, आदरणीय सोमेश भाई जी. बधाई आपको

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 12:32pm

Aadarniya Somesh Ji,

Samajik vyavastha par sahi chot.  Bahut badhai.

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:52am

बहुत बढ़िया आदरणीय सोमेश जी |सादर अभिनन्दन |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 14, 2015 at 9:03am

बढ़िया भाई सोमेश कुमार जी दरअस्ल यही हकीकत है। बधाई आपको इस कथा के लिये

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:29am

Hari Prakash bhai ji ,aapka margdrshn evm sneh hmesha pth-prdrshn krrta hai,ise bnae rkhen

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