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17)

जी करता है उड़कर जाऊँ।

कुछ पल उसके संग बिताऊँ।

दूर बहुत ही है  उसका घर,

क्या सखि, साजन?

ना सखि, अम्बर!

18)

रातों को जब नींद न आए।

खिड़की खोल, सखी वो आए।

बाग बाग हो जाता मनवा,

क्या सखि प्रियतम?

ना री, पुरवा!

19)

उसको प्यार बहुत करती हूँ।

मगर पास जाते डरती हूँ।

दूर खड़ी देखूँ जी भरकर,

क्या सखि, प्रियतम?

ना सखि सागर!

20)

जब भी मेरा मन भर आए।

आँसू पोंछे प्यार जताए।

रखता मेरा पल-पल खयाल,

क्या सखि, साजन?

ना सखि, रुमाल!

21)

महफिल-महफिल रंग जमाए।

अपने हाथों भंग पिलाए।

मधुर-मदिर लगते उसके गुन,

क्या सखि प्रियतम?

ना सखि, फागुन!

22)

जब से उससे प्रीत लगाई।

घर बाहर होती खिलवाई।

पास न हो तो रहूँ अनमनी,

क्या सखि साजन?

नहीं, लेखनी!

23)

जब जब मेरा मन अकुलाता।

झट बहार बनकर आ जाता।

वो मेरे प्राणों की पुलकन।

क्या सखि प्रियतम?

ना सखि सावन।

24)

सदा नज़र में रखना चाहूँ।  

तनिक जुदाई सह ना पाऊँ।

उससे मेरा मोह निराला,

क्या सखि साजन?

ना सखि माला! 

25)

सखी! मुझे वो बहुत सताए।

नैन मिलाकर, फिर छिप जाए।

रहे तरसता मन बेचारा,

क्या सखि प्रियतम?

नहीं, सितारा!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 23, 2014 at 10:22am

कह मुकरियाँ छंदों की यह तीसरी क़िस्त भी भुत सुन्दर और रोचक लगी | हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना रामानी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 23, 2014 at 8:46am

बहुत सुंदर कह मुकरियाँ आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on February 23, 2014 at 12:15am

आदरणीया कल्पना दी बहुत ही सुंदर , हर एक कहमुकरी गज़ब की है बहूत बधाई आपको । लगता है दी आपकी एक पुस्तक और आने वाली है वो भी कह मुकरियों पर । बधाई आपको । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 23, 2014 at 12:01am

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, सभी छंद बहुत उम्दा रचे हैं. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.  प्रथम अर्थात 17 में "बहुत दूर मुझसे उसका घर" को "बहुत दूर पर है उसका घर" कहें तो कैसा रहेगा.सादर.

Comment by kalpna mishra bajpai on February 22, 2014 at 10:44pm

कल्पना जी आप बहुत अच्छा लिखती है बहुत -बहुत बधाई । आप मेरे दिल तक पहुँचती है मार्ग दर्शन के लिए धन्यवाद ।

Comment by कल्पना रामानी on February 22, 2014 at 10:31pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अखिलेश जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 22, 2014 at 9:15pm

आदरणीया कल्पनाजी, 

सभी मुकरियाँ लाजवाब हैं , मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें । उम्मीद है आगे और भी  पढ़ने मिले , बच्चों  के लिए एक अच्छा             खेल / पहेली है ॥

Comment by कल्पना रामानी on February 22, 2014 at 8:18pm

आ॰ राजेशकुमारी जी, मैंने तो आयोजन में  आदरणीय योगराज जी की पढ़ीं तो मन पर छा गईं। अब तो दिमाग पर  ऐसी चढ़ गई हैं कि छुटकारा ही नहीं मिल रहा।  आपको पसंद आईं, बहुत बहुत धन्यवाद।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 22, 2014 at 7:57pm

वाह वाह आ० कल्पना जी आज तो कह्मुकरियाँ छा रही हैं ओ बी ओ पर ...आपकी मुकरियाँ एक से बढ़कर एक ...क्या खूब लिखी ,बहुत बहुत बधाई आपको 

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