For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अनपढ़-गंवार" - [लघु कथा -14]

अपनी सास और जेठ-जिठानी से पिंड छुड़ाने के बाद, खुद को नये ज़माने की कहने वाली मात्र बारहवीं पास छोटी बहू काजल अब काफी संतुष्ट थी। बेटे को दूध पिलाने के लिए पति को राजी कर एक बकरी भी अब उसने पाल ली थी। गांव की एक लड़की से हर रोज़ की तरह घर की साफ-सफाई और लीपा-पोती करवाने के बाद आज काजल भोजन पकाने की तैयारी कर ही रही थी कि पति की ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। आज फिर पड़ोसी से झगड़ा हो गया था। बेटे को वहीं रसोई में छोड़ फुर्ती से वह बाहर की ओर भागी। जैसे-तैसे झगड़ा शांत कराकर जब वापस रसोई में लौटी तो नज़ारा देखकर चौंक गयी। सफाई पसंद उसकी बकरी रसोई में ही अपने मेमने को दूध पिला रही थी, और गोबर-मिट्टी से हाथ सान कर बेटा औंधा सा लेटकर स्तनपान करते मेमने को बड़े कौतूहल से निहार रहा था। यह दृश्य उसे पुनः कुछ सोचने को विवश कर रहा था कि तभी पड़ोसन घर में घुसते हुये बोली- " क्यों री काजल, आज फिर तूने मेरे आदमी को उल्टा-सीधा कहा ! "

"हम नहीं लड़ाते जुबान गंवारों से, तेरा पति ही उनसे उलझ रहा था।"

"देख काजल, मैं बांझ हूँ तो क्या, तेरी हिम्मत कैसे हुई उन्हें निकम्मा- गंवार और ऐसा-वैसा बोलने की ? अपनी जुबान पर लगाम लगा ! अरे, पढ़ी-लिखी कहती है अपने को, लड़-झगड़ के, अनपढ़-गंवार के ताने मार-मार के सब को तो भगा दिया घर से ! किस की मीत हुई तू ? तू तो अपनी सन्तान तक की मीत नहीं, जो जानबूझकर अपना दूध ही नहीं पिलाती उसे ! अरी, तू ही है असल अनपढ़-गंवार !!!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 663

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2017 at 11:11pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 3:28pm

आदरणीय उस्मानी जी बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 12:24am
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर टिप्पणी द्वारा मेरे लेखन अभ्यास को प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय /Kanta Roy जी, आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीय Shyam Narain Verma जी।
Comment by kanta roy on October 12, 2015 at 10:37pm

अनपढ़ गवाँर कौन सही मायने में , एक सार्थक प्रश्न को साकार करती लघुकथा में बेहतर प्रयास हुआ है आपका।  बधाई। 

Comment by Shyam Narain Verma on October 10, 2015 at 3:43pm
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 9, 2015 at 3:59pm
बिल्कुल सच ऐसे ड्रामेबाज़ ही सही मायने में गवार होते है।बधाई आदरणीय जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service