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संचालित कर दया करूणा, स्वार्थ पूर्ति का भाव नहीं

खुद को समर्पित तुझको कर दूँ,

इच्छाऐं मेरी खास नहीं ॥

 

डोली सजा तेरे दर पर आई, उगने वाली कोइ घास नहीं

हाथ उठाने की गलती ना करना,

नहीं सहुंगी वार कोई ॥

 

तेरे इशारों पर इत-उत डोलूँ, तूँ कोई सरकार नहीं

क्रोध करो मैं थर्र थर्र कांपू,

डरने वाली मैं नार नहीं ॥

 

तुम जालाओं शमां की महफिल, होके नशे में धुत कहीं

ढूँढ बहाने झूठ भी बोलो

इतना तुम पर ऐतबार नहीं ॥

 

भरोसा करूँ मैं खुद से ज्यादा, धोखा ना देना मुझको कभी

छोड़ ने तुझको देर करूँ ना

दिल्लगी मुझको पसंद नहीं ॥

 

पढ़ी लिखी मैं शिक्षित नारी, अबला, अनपढ़ ना गँवार नहीं

प्रेम करों तो प्यार मिलेगा

नहीं सहूँगी अत्याचार कोई ॥

 

दफ्‍तर संग मैं घर भी संभालू, आराम का ना नाम कहीं

ऊपर सें तेरे नखरे सहती

मुझमें शक्ति का अंबार नहीं ॥

 

क़दम मिला मैं साथ चलूँ तेरे, मानती तेरी हर बात कहीं

हँसी खु़शी तेरे संग, जिंदंगी बिता दूँ

प्रेम का मेरे कोई पार नहीं ॥

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Samar kabeer on January 28, 2020 at 3:47pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2020 at 6:37am

आ. भाई फूलसिंह जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

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