For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)

22 22 22 22 22 22 22 2

गदहे को भी बाप बनाऊँ कैसी ये मज़बूरी है,
कुत्ते सा बन पूँछ हिलाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

एक गाम जो रखें न सीधा चलना मुझे सिखायें वे,
उनकी सुन सुन कदम बढ़ाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

झूठ कपट की नई बस्तियाँ चमक दमक से भरी हुईं,
उन बस्ती में घर को बसाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

सबसे पहले ऑफिस आऊँ और अंत में घर जाऊँ,
मगर बॉस को रिझा न पाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

ऊँचे घर में तोरण मारा पहले सोच नहीं पाया,
अब नित उनके नाज़ उठाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

सास ससुर से माथा फोड़ूं साली सलहज एक नहीं,
मैं ऐसे ससुराल में जाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

डायटिंग घर में कर कर के पीठ पेट मिल एक हुये,
पर दावत में ठूँस के खाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

कारोबार किया चौपट है चंदे के इस धंधे ने,
हर नेता से आँख चुराऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

पहुँच बना कर लगी नौकरी गई सेंध लग तनख्वाह में,
ऊपर सबका भाग भिजाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

झूठी वाह का दौर सुखन में 'नमन' आज ऐसा आया,
नौसिखियों को "मीर" बताऊँ कैसी ये मज़बूरी है।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 27, 2018 at 4:11pm

वाह वाह बड़ी ही अच्छी ग़ज़ल कही है..सादर

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 25, 2018 at 12:28pm

आदरणीय समर साहब रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मिली, बहुत आभार।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 24, 2018 at 12:22pm

जी आ. समर सर 
जानकारी के लिए शुक्रिया,
इस टिप्पणी के प्रकाश में मेरा हज़ल वाला कमेंट   निरस्त समझा जाय 
सादर 

Comment by Samar kabeer on April 24, 2018 at 11:55am

जनाब निलेश जी आदाब,आम तौर पर हास्य रचना को 'हज़ल' कह दिया जाता है,लेकिन ये ग़लत है "हज़ल" का अर्थ होता है अश्लील बेहूदा कलाम, जिसका उदाहरण देना भी यहाँ मुमकिन नहीं,इसे 'मज़हिया ग़ज़ल' या उर्दू में "तंज़-ओ-मिज़ाह" कहा जाता है ।

Comment by Samar kabeer on April 24, 2018 at 11:48am

जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब, मज़ाहिया ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

इसे ग़ज़ल की बजाय 'मज़हिया ग़ज़ल' का शीर्षक देंगे तो बहतर होगा ।

तीसरे शैर के सानी मिसरे में 'उन बस्ती' खटक रहा है,'उन' शब्द बहुवचन के लिए है, देखियेगा ।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 24, 2018 at 8:03am

आ0 नीलेश जी आपकी प्रतिक्रिया का हृदय से आभार। ग़ज़ल शैली की यह रचना पाठकों को अगर थोड़ा भी गुदगुदा पाती है तो मेरा लिखना सार्थक हुआ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2018 at 8:07pm

आ. बासुदेव जी 
अच्छी रचना हुई है  ग़ज़ल के नियमों का पालन कर रही है ,,लेकिन इस के ग़ज़ल होने पर संदेह है..
पिछले सप्ताह OBO    भोपाल चैप्टर में ग़ज़ल के ज्ञाता डॉ आज़म ने बहुत ज़ोर देकर कहा है कि ग़ज़ल में ग़ज़लपन होना चाहिए..   तगज्ज़ल होना चाहिए.. जिसका यहाँ अभाव है ..
ये हास्य रचना हज़ल   कही जा सकती है 
शायद 
सादर 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 23, 2018 at 7:29pm

आदरणीय तेजवीर जी इस हौसला आफजाई का बहुत शुक्रिया।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 23, 2018 at 7:26pm

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका हृदय से आभार।

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on April 23, 2018 at 7:25pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ग़ज़ल आपको गुदगुदा पाई लिखना सार्थक हुआ। आपका तहे दिल से शुक्रिया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service