ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)
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गदहे को भी बाप बनाऊँ कैसी ये मज़बूरी है,
कुत्ते सा बन पूँछ हिलाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
एक गाम जो रखें न सीधा चलना मुझे सिखायें वे,
उनकी सुन सुन कदम बढ़ाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
झूठ कपट की नई बस्तियाँ चमक दमक से भरी हुईं,
उन बस्ती में घर को बसाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
सबसे पहले ऑफिस आऊँ और अंत में घर जाऊँ,
मगर बॉस को रिझा न पाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
ऊँचे घर में तोरण मारा पहले सोच नहीं पाया,
अब नित उनके नाज़ उठाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
सास ससुर से माथा फोड़ूं साली सलहज एक नहीं,
मैं ऐसे ससुराल में जाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
डायटिंग घर में कर कर के पीठ पेट मिल एक हुये,
पर दावत में ठूँस के खाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
कारोबार किया चौपट है चंदे के इस धंधे ने,
हर नेता से आँख चुराऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
पहुँच बना कर लगी नौकरी गई सेंध लग तनख्वाह में,
ऊपर सबका भाग भिजाऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
झूठी वाह का दौर सुखन में 'नमन' आज ऐसा आया,
नौसिखियों को "मीर" बताऊँ कैसी ये मज़बूरी है।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
वाह वाह बड़ी ही अच्छी ग़ज़ल कही है..सादर
आदरणीय समर साहब रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मिली, बहुत आभार।
जी आ. समर सर
जानकारी के लिए शुक्रिया,
इस टिप्पणी के प्रकाश में मेरा हज़ल वाला कमेंट निरस्त समझा जाय
सादर
जनाब निलेश जी आदाब,आम तौर पर हास्य रचना को 'हज़ल' कह दिया जाता है,लेकिन ये ग़लत है "हज़ल" का अर्थ होता है अश्लील बेहूदा कलाम, जिसका उदाहरण देना भी यहाँ मुमकिन नहीं,इसे 'मज़हिया ग़ज़ल' या उर्दू में "तंज़-ओ-मिज़ाह" कहा जाता है ।
जनाब बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी आदाब, मज़ाहिया ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
इसे ग़ज़ल की बजाय 'मज़हिया ग़ज़ल' का शीर्षक देंगे तो बहतर होगा ।
तीसरे शैर के सानी मिसरे में 'उन बस्ती' खटक रहा है,'उन' शब्द बहुवचन के लिए है, देखियेगा ।
आ0 नीलेश जी आपकी प्रतिक्रिया का हृदय से आभार। ग़ज़ल शैली की यह रचना पाठकों को अगर थोड़ा भी गुदगुदा पाती है तो मेरा लिखना सार्थक हुआ।
आ. बासुदेव जी
अच्छी रचना हुई है ग़ज़ल के नियमों का पालन कर रही है ,,लेकिन इस के ग़ज़ल होने पर संदेह है..
पिछले सप्ताह OBO भोपाल चैप्टर में ग़ज़ल के ज्ञाता डॉ आज़म ने बहुत ज़ोर देकर कहा है कि ग़ज़ल में ग़ज़लपन होना चाहिए.. तगज्ज़ल होना चाहिए.. जिसका यहाँ अभाव है ..
ये हास्य रचना हज़ल कही जा सकती है
शायद
सादर
आदरणीय तेजवीर जी इस हौसला आफजाई का बहुत शुक्रिया।
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपका हृदय से आभार।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ग़ज़ल आपको गुदगुदा पाई लिखना सार्थक हुआ। आपका तहे दिल से शुक्रिया।
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