For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस खचाखच भरी हुई थी। चुकि मैं पहले आ गया था, इसलिए मुझे सीट मिल गयी थी, बावजूद इसके भीड़ का असर मुझ पर भी हो रहा था।

यकायक मेरी नजर एक ऐसे शख्स पर गयी, जो मुझे बचपन के दिनों में गणित पढ़ाया करते थे। वे भी बस में खड़े खड़े भीड़ के दबाव को झेल रहे थे। लगभग 30 साल पहले, एक हृष्ट पुष्ट युवा को आज एक कमजोर असहाय बुजुर्ग के रूप में देखकर पहले पहचानने में थोड़ी असहजता हुई पर ध्यान से देखने पर मैं उन्हें भली भांति पहचान गया ।

मैं उठा और प्रणाम कर अपनी सीट पर उन्हें बैठने का आग्रह किया। मेरी सदाशयता पर वो भावुक हुए, उन्होंने मेरे चेहरे की तरफ कई बार देखा और मुझे पहचानने की कोशिश की, पर शायद पहचान नहीं पाए।

उनकी असमंजसता को दूर करने के लिए मैं ही पूछ बैठा-"गुरुजी! क्या आप मुझे नहीं पहचाने?

गुरुजी बोले- "चेहरा तो कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है, पर सच यही है कि मैं आपको पहचान नहीं पा रहा हूँ।

'गुरुजी मैं आपका एक भूतपूर्व शिष्य हूँ। जब मैं पाँचवी कक्षा में था तो आप ही मुझे गणित पढ़ाया करते थे।' गुरुजी की बात को लगभग बीच मे काटते हुए मैं बोल पड़ा।

गुरुजी मुस्कुराये और बोले-"बेटा शिष्य कभी भूतपूर्व नहीं होता। शिष्य सदैव अभूतपूर्व होता है। आदमी कितना भी बड़ा क्यों न हो जाये, चाहे उम्र में या कद में। वह गुरु के लिए हमेशा ही उसका शिष्य ही होता है।"

मैं अपनी नासमझी पर लज्जित हो उनकी बातें उसी तरह सुनने लगा जैसे बचपन मे कभी सुना करता था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 788

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 5, 2017 at 2:23pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 5, 2017 at 1:17pm
आभार भाई आद0 मोहम्मद आरिफ जी। आपके प्रोत्साहन से ऊर्जा मिलती है। सादर
Comment by Mohammed Arif on September 5, 2017 at 11:23am
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब, लघुकथा का प्रयास आश्वस्ति कारक है । बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service