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ग़ज़ल - क्यों भला दंड वत हुआ जाये ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22/112

अब यहाँ पर विगत हुआ जाये

या, जहाँ से विरत हुआ जाये

 

खूब दीवार बन जिये यारो

चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये

 

कोई खोले तो बस खला पाये

प्याज़ की सी परत हुआ जाये

 

ताब रख कर भी सर उठाने की

क्यों भला दंड वत हुआ जाये

 

आग, पानी , हवा की ले फित्रत 

हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये

 

खूबी ए  आइना बचाने को 

क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ जाये

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2017 at 10:43pm
आदरणीय गिरिराज सर उम्दा गजल के लिए हार्दिक बधाई,आपकी गजल पे चर्चा से हमारी भी जानकारी बढ़ी। आदरणीय समर कबीर जी को भी हार्दिक नमन!
Comment by Samar kabeer on August 6, 2017 at 10:18pm
मेरा काम जानकारी देना है,कोई माने न माने ।
अगर आप 'लम्हे'ही रखना चाहते हैं तो 'लम्हें'शब्द से अनुस्वार तो हटाइये भाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 8:34pm

आदरणीय समर भाई , आपकी द्वारा दी गयी जानकारी को मै जानकारी के रूप मे स्वीकार करता हूँ । हिन्दी भाषी होने के कारण मै सौती काफिया को पहचान ही नही सकता , अतः उसे ऐसे ही स्वीकार कर के चलता हूँ .और आपसे भी निवेदन करता हूँ ।
दूसरी बात - खत , बुत , सांस ,लम्हा आदि ऐसे शब्दों के बहुवचन अलग होते हुये भी  खतों , बुतों सांसों और लम्हों , नामी गिरामी  शायरों के द्वारा स्वीकार किये गये हैं और इसी रूप मे उपयोग भी किये गये हैं ... लम्हात लफ़्ज़ से मै भी वाक़िफ हूँ .. मै लम्हें के रूप मे उपयोग किया हूँ ।
सटीक जानकारी और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Samar kabeer on August 6, 2017 at 7:04pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'चन्द लम्हें तो छत हुआ जाये'
अगर आपने 'लम्हे'को बहुवचन में बदलने के लिए 'लम्हें'किया है तो गलत है,'लम्हे'का बहुवचन 'लम्हात' होगा ।

आख़री शैर में क़ाफ़िया दोष है,'फ़क़त' शब्द के अंत में 'तोय' है 'त' नहीं देखियेगा ।

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