For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ---झुकी झुकी सी नज़र में देखा

-----**** ग़ज़ल ***------

121 22 121 22 121 22 121 22

झुकी झुकी सी नज़र में देखा ,
कोई फ़साना लिखा हुआ है ।।
ये सुर्ख चेहरा बता रहा है
के दिल का मौसम जुदा जुदा है ।।

------------------------------------------------

फ़िजा की सूरत बदल रही है ,
अजीब मंजर है आशिकी का ।।
हैं मुन्तजिर ये सियाह रातें ,
वो चांद कितना ख़फ़ा खफ़ा है ।।

-----------------------------------------------

तमाम शिकवे गिले हुए हैं ,
तमाम बातें बयाँ हुई हैं ।
जो फासले बन गए कभी थे ,
वो रफ्ता रफ्ता बढ़ा रहा है ।।
--------------------------------------------------

है आँधियों का अजब तमाशा
सुकूँ के लम्हों ने साथ छोड़ा ।
ये तीरगी का अजीब आलम,
चिराग घर का बुझा बुझा है ।।

----------------------------------------------------

जरूर कुछ तो मलाल होगा ,
हमारी चाहत के हौसलों से ।
ऐ हुस्न वाले है फिक्र मुझको
गुनाह क्या जो कटा कटा है ।।

------------------------------------------------

जो आग दिल में लगा गए थे ,
वो आग अब तक बुझी नहीं है ।
सुलग रही है ये दिल की बस्ती ,
दयार में अब धुंआ धुंआ है ।।

--------------------------------------------------

यहाँ रकीबों की महफिलों में ,
तेरी अदाएं मचल रही हैं ।
तेरे उसूलों की सरजमीं पर ,
वफ़ा का झंडा झुका झुका है ।।

----------------------------------------------------

नकाब इतना उठा के मत चल
हैं रिंद मुद्दत से तिश्नगी में ।
ये जाम छलका न आंख से अब
ये मैकदा क्यूँ खुला खुला है ।।

-----------------------------------------------

न नींद आई न चैन आया ,
न होश में तुम मिले अभी तक ।
ये तेरा लहजा बता रहा है
ये इश्क तेरा नया नया है ।।

--------------------------------------------------

कोई तो रहबर है तेरे दिल का ,
किसी की नजरें हुई हैं कातिल ।
जो नूर करता था बज्म रोशन ,
वो नूर कैसा लुटा लुटा है ।।

---------------------------------------------------

ओ जाने वाले जरा ठहर जा
इधर भी अपनी निगाह कर दे ।
जो जख्म मुझको मिले थे तुझसे
वो जख्म अब तक हरा हरा है ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
कॉपी राइट

Views: 837

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2017 at 9:31pm

वाह वाह  नवीन जी , वाट्स पर आप की गजल बावनी पढ़कर हैरान था . यह एक और हसीन गजल  पढने को मिली. बहुत बहुत  मुबारकवाद

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on June 23, 2017 at 9:19pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है। बधाई।
Comment by Sushil Sarna on June 23, 2017 at 6:52pm

ओ जाने वाले जरा ठहर जा
इधर भी अपनी निगाह कर दे ।
जो जख्म मुझको मिले थे तुझसे
वो जख्म अब तक हरा हरा है ।।


वाह बहुत दिलकश ग़ज़ल। .. हार्दिक बधाई। सर क्षमा सहित
''जो जख्म मुझको मिले थे तुझसे
वो जख्म अब तक हरा हरा है ।।
इसमें प्रथम पंक्ति में ज़ख़्म का प्रयोग बहुवचन के रूप में हुआ है जबकि द्वितीय पंक्ति में एक वचन के रूप में , क्या ये थोड़ा सा अटपटा नहीं लगता या तो प्रथम पंक्ति में उसे एक वचन कर दिया जाए या जैसा आप उचित समझें। ... कृपया अन्यथा न लेवें।

Comment by Naveen Mani Tripathi on June 23, 2017 at 4:43pm
आ0 आरिफ साहब सादर आभार ।
Comment by Mohammed Arif on June 23, 2017 at 2:51pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service