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ग़ज़ल - हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके ( गिरिराज भंडारी )

221  2121  1221 212

हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके

तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके

 

तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को

ता फिर कोई  भी शौक़ ए बगावत न कर सके

 

हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की  

हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके

बारगाह - दरबार

मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत

तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके

 

बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये

हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके

 

माना कि तल्ख़ियाँ रहीं गुफ़्तार में मगर    

पोशीदा यार तुम भी अदावत न कर सके

 

मिल कर निजाम से कोई आईन ऐसा गढ़     

कोई किसी ज़मीन पे हुज्जत न कर सके

आईन - कानून , विधान

उर्दू का लफ्ज़ था कोई हिन्दी के लफ्ज़ हम

अफसोस पास रह के इज़ाफत न कर सके

इज़ाफत - सम्बन्ध

पगड़ी की फिक्र थी जिन्हें, अकड़े रहे सदा  

झुक कर वो फिर कहीं भी मुहब्बत न कर सके

*******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:41pm

आदरनीय नीलेश भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

आदरनीय खुदा और तेरे मे शुतुर्गुर्बा की की सूरत नही बनती ..... आप ख़ुदा के ऊपर शेर सर्च कर के देखियेगा ... वैसे रेख्ता मे भी बहुत शेर मिल जायेंगे ।  जब मुहब्बत और इबादत में दूरियाँ खत्म हो जायें तो ... तू .. तेरे से ही बात होती है ।

उला मे भी ने की कमी मुझे नही लग रही है ... मेरे खयाल से ... फिर भी विचारा धीन रखा हूँ .. कुछ सुधार पाया तो ज़रूर सुधारूँगा ,, किसी और जानकार का इंतिज़ार है अभी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:35pm

आदरनीय बसंत भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय तल से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:34pm

आदरनीय बृजेश भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:33pm

आदरनीया राजेश जी , बहुत दिनो बाद आपको पटल पर आये देख खुशी हुई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:32pm

आदरणीय नादिर खान भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया  आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:31pm

आदरणीय मनन भाई , आपका ह्र्दय से आभार , उत्साह वर्धन के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:31pm

आदरनीय सविन्द्र भाई , आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:30pm

आदरणीय अनुराग भाई , ग़ज़ल की मुखर सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 1:29pm

आदरणीय रवि भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 19, 2017 at 8:34am

आ. गिरिराज जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई  है ..बधाई 
.

बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये

हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके..इस शेर में ऊपर तेरे..और नीचे ख़ुदा की आने से शातुर्गुरबा की सूरत है .. ऊला में एक ने की भी कमी है 
सादर 

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