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" अस्पृश्य" - लघुकथा :अर्पणा शर्मा

मालकिन ने रसोई के एक कोने में रखी थोड़ी पिचकी सी , घिसी थाली, कटोरी , ग्लास और चम्मच उठा,  उसमें खाना सजाया और खाना बनाने वाली को रसोई के बाहर एक कोने में जमीन पर बिठाकर उसके सामने थाली रख दी।

खाना बनाने वाली का आज उस घर में पहला ही दिन था। जल्दी से खाना खाकर जूठे बर्तन सिंक में रख दिये क्योंकि बर्तन मलने वाली भी आती थी।

मालकिन ने देखा तो उसे कड़क शब्दों में निर्देश मिले -
" खाना खाकर अपने बर्तन धोकर वहाँ उस कोने में रखना। दूसरे बर्तनों से छूना नहीं चाहिए ।"

वह हक्की-बक्की सी रह गई । उसके जी में आया कि पलट कर उत्तर दे -
"मालकिन आप लोग मेरे हाथ का बना खाना तो खालेते हैं ना, फिर....???"!
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on April 19, 2017 at 8:02pm
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
एक निवेदन ये है कि मंच की सभी रचनाओं को आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का इन्तिज़ार रहता है,उन्हें भी एक नज़र देख लिया करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 19, 2017 at 7:33pm

अच्छी लघु कथा आद० अर्पणा शर्मा जी बहुत बहुत बधाई 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 19, 2017 at 11:27am

हलाकि कथानक बहुत जाना पहचाना और पुराना है, लेकिन लघुकथा अच्छी हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० अर्पणा शर्मा जी.   

Comment by Mohammed Arif on April 18, 2017 at 7:17pm
आदरणीया अर्पणा शर्मा जी आदाब, अपने कथानक के साथ पूरा-पूरा न्याय करती लघुकथा । इस लघुकथा ने चुपके से अपनी व्यंजना भली-भाँति प्रकट कर दी । ढेरों बधाईयाँ ।

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