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 सरसी छंद

वृन्दावन की ले पिचकारी,बरसाने का रंग|

अंग अंग धो डालो पीकर ,महादेव की भंग|

राधा जैसी पावनता ले ,कान्हा जैसा प्यार|

बरसाओ पावन रंगों की ,रिमझिम मस्त फुहार| 

 

चन्दा से लेकर कुछ चाँदी ,औ सूरज से स्वर्ण|

केसर की क्यारी से चुनकर ,केसरिया नव पर्ण|

सच्चाई मन की अच्छाई ,साथ मिलाकर घोट|

पावन रंग बनाना  सच्चा ,नहीं मिलाना खोट|

 

द्वेष क्लेश से मैले मुखड़े ,जग में मिलें अनेक|

भूल हरा केसरिया आओ ,हों जाएँ सब एक|

भीतर से तन मन उजला हो,तभी सफल हो पर्व|

अपने भारत के पर्वों पर ,हम सब को हो गर्व|   

---------मौलिक एवं अप्रकाशित   

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Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:45am

आद० मोहम्मद आरिफ़ जी ,आपको छंद पसंद आया आपका बहुत बहुत शुक्रिया |इसका विधान उपर लिखना भूल गई .इस लिए यहाँ लिख रही हूँ 

विधान -..हर पंक्ति ..27 मात्रा (16,11पर यति)अंत में 21 अनिवार्य


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:42am

आद० महेंद्र कुमार जी ,आपको ये सरसी छंद रुचिकर लगा आपका दिल से बहुत बहुत आभार .

Comment by Mohammed Arif on March 13, 2017 at 9:33pm
आदरणीया राजेश कमारी जी आदाब, बेहतरीन सरसी छंद ,हार्दिक बधाई और होली पर्व की शुभ-कामनाएँ । काश, इस छंद की बह्र भी लिख दी होती तो अच्छा होता ताकि मुझ जैसे छंद के सीखने वाले जिज्ञासु को कुछ सीखने को मिल जाता ।
Comment by Mahendra Kumar on March 13, 2017 at 9:19pm
होली के रंगों से सराबोर इस उम्दा प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया राजेश मैम। सादर।

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