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११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२  ११२

भँवरे कलियाँ तरु  झूम उठें जब फाग बयार करे बतियाँ|

दिन रैन कहाँ फिर चैन पड़े कतरा- कतरा कटती रतियाँ|

कविता, वनिता, सविता, सरिता ढक के मुखड़ा छुपती फिरती|

जब रंग अबीर लिए कर में निकले किसना धड़के छतियाँ|

 

नव लाल गुलाल मले मितवा हँसती सखियाँ हँसती नगरी|

कजरा लहका गज़रा महका  मुख लाल हुआ पिघली सगरी|   

तन काँप उठा धड़का जियरा चुप देह रही चुप होंठ हिले|    

पर बोल पड़ी अँखियाँ पगली छलकी झट प्रीत भरी गगरी|

मौलिक एवं अप्रकाशित  

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:51am

आद० लक्ष्मण रामानुज लडिवाल  जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:50am

आद० सुरेश  कुमार कल्याण जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:50am

आद० राम आश्रय  जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:49am

आद० विजय निकोरे  जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:48am

आद० सत्यनारायण सिंह  जी, आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2017 at 10:47am

आद० महेंद्र कुमार जी आपका बहुत बहुत आभार आपको ये छंद मुक्तक पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हो गया |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 9, 2017 at 3:43pm

अति सुंदर मनोहारी मुक्तक के लिए हार्दिक बधाई -
जब छंद रचे दुर्मिल में तब भाव बने अति सुन्दर सुन्दर
कहना हमको लगती रचना मन भावन रूप मनोहर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2017 at 1:14pm

आदरणीय गिरिराज जी ,आपको प्रस्तुति पसंद आई दिल से बहुत बहुत आभार आपका सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2017 at 1:13pm

आद० रामबली गुप्ता भैया ,आपका कहना सही है ये सवैया छंद पर आधारित मुक्तक ही हैं शीर्षक में गलती वश ये नहीं लिख पाई इसको ठीक कर लूँगी यह मैं पहली प्रतिक्रिया के वक़्त ही कह चुकी हूँ मैंने सवैया पहली बार नहीं लिखे भैया पहले भी बहुत बार लिख चुकी हूँ मेरी प्रकाशित पुस्तक काव्य कलश में भी सवैया लिखे हुए हैं ,यहाँ सगरी का अर्थ सम्पूर्ण/सारी से लिया है |

आपका सवैया सुन्दर है बहुत बहुत बधाई एवं आभार . 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2017 at 1:05pm

आद० सुरेन्द्रनाथ जी ,आपको सवैया छंद पर आधारित ये मुक्तक पसंद आये दिल से बहुत बहुत शुक्रिया 

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