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चुगलियाँ कर बैठी आँखें और हैरानी मेरी (ग़ज़ल 'राज'

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

कितने रिश्ते तोड़ आई तल्ख़ मनमानी मेरी

क्यूँ गवारा हो किसी को अब परेशानी मेरी

 

शमअ के पहलू में रख कर जान  परवाना  कहे

इक कहानी खुद लिखेगी अब ये कुर्बानी मेरी

 

रूबरू आये तो धोका दे गया मेरा नकाब

चुगलियाँ कर बैठी आँखें और हैरानी मेरी  

 

टांक दो दिलकश सितारे कहकशाँ से तोड़कर

बोलती है अब्र से देखो चुनर धानी मेरी

 

शह्र भर में कू ब कू तक हो गई रुस्वाइयाँ

कर गई बर्बाद मुझको हाय नादानी मेरी

 

पीले पत्तों को डराती ख़्वाब में आकर ख़िज़ाँ

मिलना  तुम तैयार दर पे चाल तूफानी मेरी

 

ढूँढती इक दिन ख़ुशी वो आएगी सोचूँ मगर  

कैसे पहचानेगी मुझको शक्ल अनजानी मेरी

.

-----मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2017 at 9:00pm

आद० गुरप्रीत सिंह जी ,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से बहुत उत्साह वर्धन हुआ तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2017 at 8:58pm

आद० समर भाई जी ,इस बार सोच रही थी की ग़ज़ल पर आप आओगे या नहीं आपकी तबियत ठीक नहीं थी आपकी प्रतिक्रिया पाकर बेहद ख़ुशी हुई अभी तबियत कैसी है .आपने जो मार्गदर्शन किया है उसके लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ इसको संशोधित कर लूँगी आप अपनी सेहत का ख़याल रखियेगा |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 2, 2017 at 8:36pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई अदरनिया
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2017 at 7:20pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर बधाई स्वीकार करें।
Comment by Samar kabeer on March 2, 2017 at 5:58pm
भाई गुरप्रीत जी आदाब,तबीअत अभी ठीक नहीं है,दिल नहीं माना इसलिये मंच पर आ गया,अभी मंच पर पूरी तरह सक्रिय नहीं रह पाउँगा,आपकी दुआओं के लिये शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on March 2, 2017 at 5:20pm
आदरणीय समर कबीर जी..आपको मंच पर वापिस देख कर बहुत खुशी हुई...उम्मीद है आपकी तबीयत अब अच्छी होगी...हम सब यही चाहते हैं कि आप सदैव स्वस्थ रहें और हमारा मार्ग दर्शन करते रहें
Comment by Gurpreet Singh jammu on March 2, 2017 at 5:16pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी..आपकी गज़ल बहुत पदँद आई...सभी अशआर दमदार हैं..
Comment by Samar kabeer on March 2, 2017 at 3:49pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

'कितने रिश्ते तोड़ आई तल्ख़ मनमानी मेरी'
इस मिसरे में 'तल्ख़'शब्द भर्ती का है, क्योंकि मनमानी तल्ख़ या मीठी नहीं होती,'तल्ख़'के स्थान पर "देख"शब्द रखना मुनासिब होगा ।

'शह्र भर में कू ब कू तक हो गई रुस्वाइयाँ'
इस मिसरे में 'तक'शब्द भर्ती का है, क्योंकि कू ब कू के साथ तक कहने की ज़रूरत नहीं होती,ये मिसरा यूँ किया जा सकता है :-
"शह्र भर में कू ब कू होने लगीं रुस्वाइयाँ"
देखियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2017 at 6:44pm

आद० डॉ० आशुतोष जी,आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है आप हमेशा उत्साह वर्धन करते हैं आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत शुक्रगुजार हूँ   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2017 at 6:42pm

प्रिय कल्पना जी ,शमअ ,शम्मा को ही कहते हैं जो हम दैनिक बोलचाल में  शमा परवाना कहते हैं वो शमा दरअसल शमअ लिखी जाती है 

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