For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चुगलियाँ कर बैठी आँखें और हैरानी मेरी (ग़ज़ल 'राज'

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

कितने रिश्ते तोड़ आई तल्ख़ मनमानी मेरी

क्यूँ गवारा हो किसी को अब परेशानी मेरी

 

शमअ के पहलू में रख कर जान  परवाना  कहे

इक कहानी खुद लिखेगी अब ये कुर्बानी मेरी

 

रूबरू आये तो धोका दे गया मेरा नकाब

चुगलियाँ कर बैठी आँखें और हैरानी मेरी  

 

टांक दो दिलकश सितारे कहकशाँ से तोड़कर

बोलती है अब्र से देखो चुनर धानी मेरी

 

शह्र भर में कू ब कू तक हो गई रुस्वाइयाँ

कर गई बर्बाद मुझको हाय नादानी मेरी

 

पीले पत्तों को डराती ख़्वाब में आकर ख़िज़ाँ

मिलना  तुम तैयार दर पे चाल तूफानी मेरी

 

ढूँढती इक दिन ख़ुशी वो आएगी सोचूँ मगर  

कैसे पहचानेगी मुझको शक्ल अनजानी मेरी

.

-----मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 906

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2017 at 9:00pm

आद० गुरप्रीत सिंह जी ,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से बहुत उत्साह वर्धन हुआ तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 2, 2017 at 8:58pm

आद० समर भाई जी ,इस बार सोच रही थी की ग़ज़ल पर आप आओगे या नहीं आपकी तबियत ठीक नहीं थी आपकी प्रतिक्रिया पाकर बेहद ख़ुशी हुई अभी तबियत कैसी है .आपने जो मार्गदर्शन किया है उसके लिए बेहद शुक्रगुजार हूँ इसको संशोधित कर लूँगी आप अपनी सेहत का ख़याल रखियेगा |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 2, 2017 at 8:36pm
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई अदरनिया
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2017 at 7:20pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर बधाई स्वीकार करें।
Comment by Samar kabeer on March 2, 2017 at 5:58pm
भाई गुरप्रीत जी आदाब,तबीअत अभी ठीक नहीं है,दिल नहीं माना इसलिये मंच पर आ गया,अभी मंच पर पूरी तरह सक्रिय नहीं रह पाउँगा,आपकी दुआओं के लिये शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on March 2, 2017 at 5:20pm
आदरणीय समर कबीर जी..आपको मंच पर वापिस देख कर बहुत खुशी हुई...उम्मीद है आपकी तबीयत अब अच्छी होगी...हम सब यही चाहते हैं कि आप सदैव स्वस्थ रहें और हमारा मार्ग दर्शन करते रहें
Comment by Gurpreet Singh jammu on March 2, 2017 at 5:16pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी..आपकी गज़ल बहुत पदँद आई...सभी अशआर दमदार हैं..
Comment by Samar kabeer on March 2, 2017 at 3:49pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

'कितने रिश्ते तोड़ आई तल्ख़ मनमानी मेरी'
इस मिसरे में 'तल्ख़'शब्द भर्ती का है, क्योंकि मनमानी तल्ख़ या मीठी नहीं होती,'तल्ख़'के स्थान पर "देख"शब्द रखना मुनासिब होगा ।

'शह्र भर में कू ब कू तक हो गई रुस्वाइयाँ'
इस मिसरे में 'तक'शब्द भर्ती का है, क्योंकि कू ब कू के साथ तक कहने की ज़रूरत नहीं होती,ये मिसरा यूँ किया जा सकता है :-
"शह्र भर में कू ब कू होने लगीं रुस्वाइयाँ"
देखियेगा ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2017 at 6:44pm

आद० डॉ० आशुतोष जी,आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है आप हमेशा उत्साह वर्धन करते हैं आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से बहुत शुक्रगुजार हूँ   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 1, 2017 at 6:42pm

प्रिय कल्पना जी ,शमअ ,शम्मा को ही कहते हैं जो हम दैनिक बोलचाल में  शमा परवाना कहते हैं वो शमा दरअसल शमअ लिखी जाती है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
18 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service