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इक माँ होती है ....

इक माँ होती है ....

कितना ऊंचा
घोंसला बनाती है
नयी ज़िन्दगी का
ज़मीं से दूर
घर बनाती है
अपने पंखों से
अपने बच्चों को
हर मौसम के
कहर से बचाती है
न जाने कहाँ कहाँ से लाकर
अपने बच्चों को
दाना खिलाती है
पंख आते हैं
तो उड़ना सिखाती है
नए पंखों को
आसमां अच्छा लगता है
ज़मी से रिश्ता बस
सोने का लगता है
देर होते ही मां
घोंसले पे आती है
नहीं दिखते बच्चे
तो बैचैन हो जाती है
सांझ होते ही
घबराहट बढ़ जाती है
अपनी उड़ान का
घमंड लिए
बच्चे स्वतन्त्र हो जाते हैं
अपने ही घोंसले को
भूल जाते हैं
चिड़िया चोंच में दान लिए
वहीं बैठी रहती है
बच्चों को शायद
अब जरूरत न हो मगर
पंख अब भी
खाली घोंसले पर
फैले रहते हैं
बच्चे क्या जानें
ममता क्या होती है
वो पास रहें या दूर
वो सदा उनके पास होती है
पत्थर से हालातों को सहती
जो हर पल
मोम सी पिघलती है
वो इस जहां में
सिर्फ
इक माँ होती है

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित


अपनी सहर

Views: 617

Comment

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Comment by Sushil Sarna on August 4, 2016 at 1:39pm

आ. समर कबीर जी कन्फर्म करने का हार्दिक आभार। 

Comment by Samar kabeer on August 3, 2016 at 6:42pm
क़ह्र " सही शब्द है, क्षमा कीजिये में 'कह'लिख दिया था ।
Comment by Sushil Sarna on August 3, 2016 at 4:31pm

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी प्रस्तुति में निहित मर्म को अपने स्नेहिल शब्दों से अलंकृत करने  का हार्दिक आभार। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 3, 2016 at 11:45am

अब जरूरत न हो मगर 
पंख अब भी 
खाली घोंसले पर 
फैले रहते हैं 
बच्चे क्या जानें 
ममता क्या होती है 
वो पास रहें या दूर 
वो सदा उनके पास होती है...........वाह! मार्मिक और सुन्दर ह्रदयस्पर्शी  प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय सुशील सरना साहब. सादर. 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:23pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी     जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:22pm

आदरणीय  सुरेश कुमार 'कल्याण'    जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:22pm

आदरणीय Harash Mahajan    जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:21pm

आदरणीय    समर कबीर साहिब प्रस्तुति के भावों को दिली दाद से नवाज़ने का तहे दिल से शुक्रिया।  सर कहर  शब्द का सही शब्द 'कह' है  या 'कह्र ' है।  मेरे विचार में क ह्र होना चाहिए। आप ज्ञाता हैं कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें। अपने इस आम प्रचलित शब्द को सही बताया आपका तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 2:12pm

आदरणीया  pratibha pande     जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:27pm

आदरणीय सुशील भाई , माँ  तो बस माँ होती है ,  खूबसूरत भाव पूर्ण प्रस्तिति के लिये हार्दिक बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

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