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कितनी ज़्यादा ख़ुशी पे पाबंदी (ग़ज़ल)

2122 1212 22

क्या लगी मैक़शी पे पाबंदी
यूँ लगे, ज़िन्दगी पे पाबंदी

जो लगा दे तो मर ही जाऊँ मैं
गर कोई शाइरी पे पाबंदी

ग़म की सीमा रही नहीं कोई
कितनी ज़्यादा ख़ुशी पे पाबंदी

वो लगाते ज़ुबान पर ताला
और फिर ख़ामुशी पे पाबंदी

बम-पटाखों पे कोई रोक नहीं
आजकल छुरछुरी पे पाबंदी

खेल लो खेल ख़ूब क़ुदरत से
क्यूँ लगे त्रासदी पे पाबंदी

मेरे दुश्मन हैं इंतज़ार में "जय"
कब लगे दोस्ती पे पाबंदी
======================

(मौलिक व अप्रकाशित)
【मतला बिहार की शराबबंदी से प्रेरित है।】

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Comment

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Comment by Samar kabeer on May 18, 2016 at 2:38pm
जनाब जयनित कुमार मेहता जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।

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