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गुस्ताख सवाल(लघुकथा)राहिला

स्वर्ग के प्रवेश द्वार के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई थीं ।तभी खुद से बहुत आगे आ़ला दर्ज़े के स्वर्ग वाली कतार में अपने खा़दिम को खड़ा देख, उनकी अना को जबरदस्त ठेस पहुंची।लेकिन ये वो जगह नहीं थी जहां किसी के मन में किसी प्रकार की शिकायत या सवाल रह जाये ।सो मन में सवाल का आना हुआ नहीं कि वहाँ के दो कर्मचारियों ने फौरन उसे कतार से उठा कर परमेश्वर के समक्ष ला खड़ा किया ।
"बोलो. .!हमारे न्याय पर तेरे मन में क्या सवाल खड़ा हुआ है? "
"प्रभु! समस्त जीवन मेरा दान, पुण्य,पूजा-पाठ में गुजरा । और वो जिसने शायद ही कभी कोई अनुष्ठान या सतकर्म किया हो,वो आ़ला दर्ज़े के स्वर्ग में, और मैं निचले. ..?"
"हां..,उसे ये मुकाम मिला, क्योंकि पूरे जीवन भर उसने क्षण भर के लिये भी किसी बात का फक्र(गर्व)या तकब्बुर(घमंड)नहीं किया।"
"फक्र और तकब्बुर? वो किस बात पर करता प्रभु? मेरा दिया खाया, मेरा दिया पहना और तो और जो कुछ भी उसके पास था सब कुछ मेरा दिया हुआ ही तो था । "कहते -कहते फितरतन उसके चेहरे पर तकब्बुर छा गया ।
"अच्छा...!तो तुझे किस बात का था? तूने भी तो मेरा दिया खाया, मेरा दिया पहना । यहाँ तक कि जो कुछ भी तेरे पास था सब कुछ मेरा दिया हुआ ही तो था ।"
इतना सुनना था कि गुस्ताख सवालों की सारी चर्बी पिघल गई ।
"अरे, अरे ये कहां लाकर खड़ा कर दिया ये तो वो कतार नहीं है।"
"जी..!ये वो कतार नहीं है, ये स्वर्ग का सबसे निचले दर्ज़े की कतार है।क्यों..?क्या फिर कोई और सवाल.. .?"
"नहीं, नहीं कोई सवाल नहीं।मैं यहीं ठीक हूं।"उसने घबरा कर पीछे देखा जहां से अगला मुकाम नरक नजर आ रहा था ।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on May 14, 2016 at 1:15pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी! बहुत शानदार तरीके से आपने इंसान के कर्मों का लेखा ज़ोखा और तत्पश्चात उसके परिणामों का वर्णन किया! मनुष्य के घमंडी स्वभाव को आइना दिखाती एक  बेहतरीन लघुकथा!

Comment by Sushil Sarna on May 14, 2016 at 12:26pm

वाह आदरणीया राहिला जी वाह प्रस्तुत लघु कथा मे आपने बड़े ही रोचक ढंग से इंसानी फितरत को चित्रित किया है। मैं की क़बा में छुप ये इंसान फना होने के बाद भी अपने अहम से मुक्त नहीं हो पाता। इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक मुबारकबाद कबूल फरमायें। 

Comment by Meena Pathak on May 14, 2016 at 8:58am

बहुत सुन्दर ..प्रेरक लघुकथा ...बधाई आदरणीया रहिला जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2016 at 12:38am
अल्लाह तआ़ला न जाने किस कर्म से ख़ुश हो जाये, और किस कर्म से नाराज़! गर्व और घमंड उसे कतई पसंद नहीं। बेकसूर पत्थर को पैर से ठोकर मारने वाले तक से वह नाराज़ हो सकता है, और राह के बाधक पत्थर को हटा कर राही के लिए खतरा टालने वाले पूर्व अपराधी से वह ख़ुश भी हो सकता है। धर्म शिक्षा केन्द्रित बेहतरीन विचारोत्तेजक रचना के लिए एक बार पुनः तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राहिला साहिबा।

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