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किस तरह का ये कहो नाता है.

वज्न - 2122---1122---22 / 112

किस तरह का ये कहो नाता है

उनके बिन पल न रहा जाता है

 

लूट ले जाता है खुशियाँ सारी

उसका जाना न हमें भाता है

 

रात लाती है उम्मीदें लेकिन

दिन का सूरज हमें तड़पाता है

 

धूल हो जाते हैं अरमां सारे,

चैन इस दिल को नहीं आता है

 

रात आती है सितारे लेकर

चाँद रातों की नमी लाता है

 

मौलिक/अप्रकाशित.

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Comment by Sushil Sarna on April 25, 2016 at 4:01pm

रात आती है सितारे लेकर
चाँद रातों की नमी लाता है
..... वाह आदरणीय रक्ताले साहिब वाह बहुत ही खूबसूरत अशआर कहे हैं आपने। जिस सादगी के साथ आपने अहसासों को ग़ज़ल में पिरोया है निश्चित रूप से तारीफ़ के हकदार हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर।

Comment by Samar kabeer on April 25, 2016 at 12:31pm
जनाब अशोक कुमार रक्ताले जी आदाब,बहुत बढ़िया ग़ज़ल से नवाज़ा आपने,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।

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