For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम्हे जीतने की अदा चाहती हूँ (ग़ज़ल)...... //डॉ. प्राची

122 122 122 122

कहो तो बता दूँ कि क्या चाहती हूँ।
तुम्हारे लिए हर दुआ चाहती हूँ।

दबी सी रही ज़िन्दगी नीँव जैसी
कि अब आसमां में उठा चाहती हूँ।

निभाओ मेरा साथ या छोड़ जाओ
कहाँ तुमको खुद से बँधा चाहती हूँ।

ज़ुबाँ से मुकरना कोई तुमसे सीखे
मैं सब कागजों पर लिखा चाहती हूँ।

न दिल पर तुम्हारे कोई बोझ आए
कहाँ एक भी वायदा चाहती हूँ।

गँवाया बहुत कुछ तेरी राह चल कर
दुबारा सभी कुछ मिला चाहती हूँ।

सज़ा बिन किये जिन खताओं की पाई
करूँ आज हर वो खता चाहती हूँ।

हुनर है सँजोना ये रिश्तों की पूँजी
बुज़ुर्गों से ये सीखना चाहती हूँ।

पता है मुझे तुम गज़ब पारखी हो
तुम्हें जीतने की अदा चाहती हूँ।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1160

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on February 25, 2016 at 5:34pm

हुनर है सँजोना ये रिश्तों की पूँजी
बुज़ुर्गों से ये सीखना चाहती हूँ।

पता है मुझे तुम गज़ब पारखी हो
तुम्हें जीतने की अदा चाहती हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2016 at 3:55pm

आदरणीय नादिर खान जी 

जिस शेर को आपने इंगित किया है, वो चर्चा चाहता है...

मंच पर एक तरही मुशायरा इस ज़मीन पर हो चुका है , उसकी संकलित गजलों में इस तरह के प्रयोग स्वीकार्य देखे.. हालांकि मैं भी मिसरा-ए-सानी की प्रस्तुति से व्याकरणिक तौर पर असहज हूँ, लेकिन इस मिसरे पर चर्चा हो इसी लिए इस 'मिला' वाले शेर को साथ ही 'उठा' वाले शेर को मंच पर प्रस्तुत किया.

संकलन का लिंक प्रस्तुत है :

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/59

संशय का निवारण जानकार अवश्य करेंगे..ऐसा विश्वास है.

Comment by annapurna bajpai on February 25, 2016 at 12:18pm


हुनर है सँजोना ये रिश्तों की पूँजी
बुज़ुर्गों से ये सीखना चाहती हूँ।.........................वाह , क्या खूब गजल , बहुत बहुत बधाई आपको आ0 प्राची जी । 

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 25, 2016 at 8:03am
आदरणीय प्राची जी, हार्दिक बधाई आपको इस सुन्दर रचना के लिए..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2016 at 4:44pm

सज़ा बिन किये जिन खताओं की पाई
करूँ आज हर वो खता चाहती हूँ।

हुनर है सँजोना ये रिश्तों की पूँजी
बुज़ुर्गों से ये सीखना चाहती हूँ।    -- आरदरणीया प्राची जी , गज़ल के लिये और इन्दो अशआर के लिये आपको हार्दिक बधाई , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 24, 2016 at 11:35am

आ० प्राची बहन सुनदार ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई l

Comment by नादिर ख़ान on February 23, 2016 at 11:23pm

हुनर है सँजोना ये रिश्तों की पूँजी
बुज़ुर्गों से ये सीखना चाहती हूँ।

पता है मुझे तुम गज़ब पारखी हो
तुम्हें जीतने की अदा चाहती हूँ।... अच्छे अशआर हुये है अदरणीया, बधाई स्वीकारें ...

दुबारा सभी कुछ मिला चाहती हूँ।? इसपर पुनः विचार करें 

सादर ....

Comment by kanta roy on February 23, 2016 at 10:39pm
पता है मुझे तुम गज़ब पारखी हो
तुम्हें जीतने की अदा चाहती हूँ।---- वाह ! क्या अदा चाहती है ! क्या कहूँ , आपको पढने का एक अलग ही मजा आता है मंच पर । एक अलग ही मिजाज़ की लेखनी होती है सदा । यह गजल भी बडी़ ही खूबसूरत बन पडीं है । बधाई " कबूलियेगा " आदरणीया प्राची जी । :))))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service