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आदरणीय जयनित कुमार जी पहले तो बढि़या गजल के लिये दिली दाद कुबूल करें । दूसरे हमें भी अलिफ वस्ल के अनुसार मिसरे बह्र में लग रहे है आदरणीय तस्दीक जी से निवदेन है कि हमारी शंका के समाधान के लिये कृपया खुलासा करें कि किस लिहाज से ये मिसरे बेबह्र है । हॉं तसकदीक जी की इस बात से हम भी सहमत है कि पांचवे शेर के सानी मिसरे में अगर को गर किया जा सकता है न तो लफ्ज के मानी में कोई फर्क पडेगा न ही अलिफ वस्ल का सहारा लेना होगा । सादर । बहर हाल दूसरे शेर की सादगी पर एक बार फिर से दाद हाजिर है ।
मुक़द्दर हर किसी पे मेह्रबां होता नहीं यारो
कहीं क़दमों में है मंज़िल, भटकता दर-ब-दर कोई khoobsoorat gazal ke liye dheron daad mitrwar
बेहद उम्दा! पूरी ग़ज़ल और मतले के लिए बतौर-ए-खास मुबारकबाद कुबूल फरमाएं
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