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ख़ूबसूरती (लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही

विशाल प्राँगण की खूबसूरत बुलन्द इमारत की मुंढेर पर बैठा ब्लड कैंसर उदासी के साथ नीचे कड़ाके की ठण्ड में काँपते मरीज़ों के परिजनों को देख रहा है।

" इतने मायूस क्यों हो भाई ? "थके स्वर में दिल की बीमारी ने पूछा।

" बहन ! बारह साल का बच्चा अंतिम सांसें गिन रहा है। मेरे नाम एक और मौत दर्ज़ होने जा रही है।"

" ये तो यहाँ का रोज़ का ही काम है।मेरा भी दिल दुखी हो जाता है।"

तभी वहाँ किडनी की बीमारी आ गई
" मैं तो असमंजस में हूँ।अभी तक कोई डोनर नहीं मिला। न जी पा रही हूँ न मर पा रही हूँ।"

"मैं तो प्रेत की तरह भटकते इनके परिजनों को देखकर परेशान हो जाता हूँ।अपनों की उम्मीद में' ज़र- ज़मीन बेच कर यहाँ पड़े हैं।" ब्लड कैंसर ने गहरी साँस लेते हुए कहा।"

अचानक नीचे से शोर-शराबे की आवाजें आने लगी।
गार्ड अस्पताल परिसर में सोये लोगों को डंडे से कोंच -कोंच कर भगा रहा था।
" इस कड़ाके की ठण्ड में कहाँ जाएँ?
लोगों ने मायूस होकर कहा।
" बाहर बस स्टेशन में या मेट्रो स्टेशन के बाहर जाकर सोना।"

"पर आप रोज़ हमें यहां से क्यों भगाते हैं ?"

" देखते नहीं आप लोग जहां-तहाँ सो जाते हैं इससे अस्पताल की खूबसूरती बिगड़ जाती है।"

मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 19, 2015 at 9:25am
बेहतरीन प्रतीकात्मक चित्रण हुआ है अस्पतालों का, पीड़ितों का। कमाल किया है आपकी लेखनी ने । हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया जानकी बिष्ट वाही जी।
Comment by Janki wahie on December 18, 2015 at 12:14pm
तहेदिल से सादर आभार आ.प्रतिभा जी।आपकी दृष्टी ने कथा को एक न्य आयाम दिया।नमन।
Comment by Janki wahie on December 18, 2015 at 12:12pm
सादर आभार आ.राजेश कुमारी जी ।आपकी कथा पर सुखद उपस्तिथि ने कथा को जो मान दिया उसके लिए हार्दिक पुनः अभिनन्दन
Comment by pratibha pande on December 18, 2015 at 10:09am

बहुत  मार्मिक तथ्य को कथा में पिरोया है आपने , सरकारी अस्पतालों में ये दृश्य आम है ,डॉक्टर के राउंड के समय तो इतनी खींचातानी करते हैं रोगी और उसके घरवालों के साथ कि बस ,  बधाई स्वीकार करें इस सार्थक रचना पर आदरणीया जानकी जी 


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Comment by rajesh kumari on December 18, 2015 at 9:53am

इंसानों की इंसानों के प्रति संवेदनहीनता को एक हकीकत से रूबरू करवाया है कहानी के माध्यम से एक तरफ ठंडा मौसम कोई अपना बीमार ऊपर से गार्ड द्वारा प्रताड़ना सच्चाई को बयाँ करती इस शानदार लघु कथा हेतु बहुत- बहुत बधाई आपको जानकी जी. 

Comment by Janki wahie on December 18, 2015 at 8:30am
सादर आभार सत्यम नारायण जी
Comment by Shyam Narain Verma on December 17, 2015 at 5:25pm
बहुत उम्दा , बधाई इस लघुकथा के लिए ..
Comment by Janki wahie on December 17, 2015 at 5:18pm
सादर आभार आ.नीता जी आपकी सुखद उपस्तिथि ने कथा को मान दिया। नमन।
Comment by Janki wahie on December 17, 2015 at 5:17pm
तहेदिल से आभार प्रिय राहिला ।कथा की बखूबी समझ कर प्रतिक्रिया देने के लिए।
Comment by Rahila on December 17, 2015 at 2:44pm
बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने अपनी रचना के जरिये प्रिय जानकी दी !वाकई मरीज के साथ अटेन्डर की हालत मरीज से कम नही रह जाती । सलाम आपकी लेखनी को । सादर

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