For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा- अनाथ

पत्नी की रोजरोज की चिकचिक से परेशान हो कर महेश पिताजी को अनाथालय में छोड़ दरवाजे से बाहर तो आ गया, मगर मन नहीं माना. कहीं पिताजी का मन यहाँ लगेगा कि नहीं. यह जानने के लिए वह वापस अनाथालय में गया तो देखा कि पिताजी प्रबंधक से घुलमिल कर बातें कर रहे थे. जैसे वे बरसों से एकदूसरे को जानते हैं.

पिताजी के कमरे में जाते ही महेश ने पूछा, “ आप इन्हें जानते हैं ?” तो प्रबंधक ने कहा, “ जी मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ. वे पिछले ३५ साल से अनाथालय को दान दे रहे हैं . दूसरा बात यह है कि ३५ साल पहले जिस  बालक को वे इसी अनाथालय से गोद ले गए थे, वहीँ उन्हें यहाँ छोड़ गया.”

                                  ------------------------

१८/१०/२०१५ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Omprakash Kshatriya on October 22, 2015 at 7:49am

आ  kanta roy  जी , कभीकभी  व्यक्ति अपने मनोभावों का दबा नहीं पाता है . जिस के  परिणाम स्वरुप लघुकथा में अनावश्यक पंक्तियाँ जुड़ जाती है. आप का कथन सही है. मगर लेखक न चाहते हुए भी लघुकथा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा ही देता है. शायद यही कारण रहा हो की अंतिम पंक्तियाँ आ गई. सादर . आप का शुक्रिया इन अनमोल सुझाव के लिए. 

Comment by kanta roy on October 21, 2015 at 11:33pm

ये कथा हकीकत के बेहद करीब है। आज कल के हालत और वृद्धा आश्रमों की बढ़त एक बेहद ही गंभीर परिस्थिति है।

कथा बहुत खूब बनी है आदरणीय ओमप्रकाश जी ,लेकिन कथा की आखिरी पंक्ति पर मेरी नज़र जैसे फिर से ठहर गयी है की क्या इस पंक्ति का होना सही है ?
लघुकथा के लिए कहा गया है की सिर्फ हमें परिस्थितियों को ही कथा रूप में रखना है।
परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया पात्र के माध्यम से लेखक नहीं पाठक देंगे। सादर नमन

Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 10:25pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आप का शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 8:23pm
आदरणीय ओमप्रकाशजी सुंदर रचना है बधाई आपको
Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:45pm

आदरणीय Sheikh Shahzad Usmani जी आप की समीक्षात्मक  टिपण्णी पढ़ कर अच्छा लगा. आभार आप की सहृदयता के लिए.

Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:44pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी आप को लघुकथा मर्मस्पर्शी लगी. आभार आप का तहेदिल से.

Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:43pm

आदरणीया  kalpana bhatt जी आप को लघुकथा अच्छी लगी, पढ़ कर मेरी मेहनत सफल हो गई. अभार् आप का.

Comment by TEJ VEER SINGH on October 21, 2015 at 7:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी!आपकी  लघुकथा हृदय को छू गयी!!बेहद मार्मिक प्रस्तुति! 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 21, 2015 at 6:00pm
आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी, बहुत ही उम्दा भाव पूर्ण रचना बढ़िया शैली में पढ़ कर दिल ख़ुश हो गया।तहे दिल बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service