For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- महल के सामने मिट्टी का घर अच्छा नहीं लगता

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन

सभी कहते हैं मुझको भी 'समर' अच्छा नहीं लगता
महल के सामने मिट्टी का घर अच्छा नहीं लगता

ख़ुदा का दीन सबको अम्न का पैग़ाम देता है
हो बे अमनी ख़ुदा के नाम पर अच्छा नहीं लगता

जो हैं नादान वो इसके लिये लड़ते हैं आपस में
जो दाना हैं उन्हें ये माल-ओ-ज़र अच्छा नहीं लगता

मेरी इस बात की यारों दलील-ए-मुस्तनद ये है
वो मेरे साथ क्यों होते अगर अच्छा नहीं लगता

शरारत और शौख़ी ही भली मालूम होती है
किसी भी फूल के चहरे पे डर अच्छा नहीं लगता

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on August 29, 2015 at 1:47pm

वाह बहुत खूब सर वाह ,,,,,,,,,, वाकई किसी एक शेर का जिक्र कर बाकियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता ,,,,, और मिथिलेश जी बिलकुल सही कहा है ,,,,,,,,,,,,

Comment by मनोज अहसास on August 28, 2015 at 7:47am
नमस्कार सर
एक खूबसूरत ग़ज़ल
बेहद उम्दा
एक सिखावन दे रही है के
ऎसे लिखे
मैं बहुत ख़ामोशी से एक एक बिंदु अपने दिल में रख रहा हूँ
बहुत आभार
सादर
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 27, 2015 at 9:49pm
आदरणीय समर कबीर साब बेहद उम्दा ग़ज़ल के लिए असीम बधाइयाँ
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2015 at 9:10pm

बड़ी ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है जनाब समर साहब। किसी एक शे’र को कोट करना बाकियों के साथ नाइंसाफ़ी होगी। शे’र दर शे’र दिली दाद हाज़िर है। 

Comment by Rahul Dangi Panchal on August 26, 2015 at 4:53pm
बहुत सुन्दर गजल हुई आदरणीय
Comment by Ravi Shukla on August 26, 2015 at 1:52pm

आदरणीय समर कबीर साहब कहना न होगा कि आपकी ग़ज़लो की प्रतीक्षा सभी को होती है । आज भी एक अच्छी ग़ज़ल आपने हम सब से साझा की आभार आपका । कुछ दिन पहले के पुरानी पोस्‍ट पढ़ कर उस पर गुणी जनो की इस्‍लाह से हम अपने अभ्‍यास में सुधार की कोशिश करते रहते है । इसी क्रम में मिथिलेश जी के आग्रह को स्‍वीकार करके आपने उनकी ग़ज़ल पर जो इस्‍लाह दी उससे न केवल अादरणीय मिथ्‍ािलेश जी की ग़ज़ल में निखार आया वरन हम सब ने भी उस्‍तादाना इस्‍लाह को समझने को प्रयास किया । आपसे निवेदन है कि आप हम लोगों के लिये ही सही पर अपनी विस्‍तृत टिप्‍पणियां अवश्‍य दिया करें ।

एक बात और अगर गरां न गुजरे आप अपनी प्रोफाइल में अपना चित्र लगा दें तो क्‍या खूब रहे हमें ये अहसास होगा कि आपके अशआर पढ़ नहीं रहे वरन आपसे सुन रहे है  :-) ये एक तिफ्लाना गुजारिश भर है ।

Comment by Harash Mahajan on August 26, 2015 at 1:47pm

आदरणीय समर कबीर जी आदाब !! "अच्छा नहीं लगता" ....इस बेहतरीन रदीफ़ के साथ बहती ग़ज़ल ..क्या कहने सर !!
अहसासों की माने तो आपका ये शेर...
"मेरी इस बात की यारों दलील-ए-मुस्तनद ये है
वो मेरे साथ क्यों होते अगर अच्छा नहीं लगता"

अति सुंदर !! दाद !! वसूल पाइयेगा !! साभार !!

Comment by kanta roy on August 26, 2015 at 1:27pm
महल के सामने मिट्टी का घर ....... वाह !!! बहुत खूब गजल हुई है । बधाई आदरणीय समर कबीर जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 26, 2015 at 12:48pm

आदरणीय समर कबीर जी, आप जब ग़ज़ल कहते है तो मेरी पाठशाला शुरू हो जाती है क्या कमाल के अशआर हुए है. इस लाजवाब ग़ज़ल को पढ़कर नत हूँ. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service