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 रोने का तुम नाम न लेना रीत बनाओ हँसने की
 रोने धोने में क्या रक्खा  होड़ लगाओ हँसने की /1
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 माना पाँव धँसे हैं कब से पार उतरना मुश्किल है
 पीड़ाओं के इस दलदल में गंग बहाओ हँसने की /2
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 परपीड़ा में सुख  मत खोजो ये पथ घेरे वाला है
 दूर तलक जो ले जाती है राह बताओ हँसने की /3
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 पोंछो आँसू बाढ़ में इसकी खुशियों के घर बहते हैं
 निर्जन में भी  यारो  बस्ती रोज बसाओ हँसने की /4
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 सिर्फ हँसी ही यार खुदा  की  सबसे अच्छी नेमत है
 घाव लगे हों दिल पर कितने कश्में खाओ हँसने की /5
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 रचना मौलिक और अप्रकाशित
 
Comment
आ० मनोज भाई , आपको ग़ज़ल अच्छी लगी यह हर्ष का विषय है . हार्दिक धन्यवाद .
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