For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठठरी पर ईमानदारी /लघुकथा /कान्ता राॅय

ईमानदारी जरा चोटिल ही हुई थी कि मौके का फायदा उठा कुछ लोगों ने उसे निष्प्राण घोषित कर तुरत - फुरत में ठठरी पर कसने लगे । उन्हे डर था उसके वापस जिंदा हो गतिमान होने का ।
जिन चार कंधों पर उसकी अर्थीं उठाई जा रही थी उनमें सबसे आगे देश के कर्णधार थे उसके पीछे भ्रष्टाचार , देश के सफलतम व्यवसाई और शेयर दलाल थे ।
सबकी आँखें चमक रही थी । सबके मन में लड्डू फूट रहे थे कि पीछे रोती हुई जनता अचानक खुशी के मारे तालियाँ बजाने लगीं ।
तालियों की शोर पर काँधे देने वालों ने चौंक कर देखा तो ईमानदारी सारी रस्सी तोड़कर उठ बैठी थी ।
.
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 872

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:10am
बहुत खूब कही है अापने अादरणीया प्रतिभा जी , सच में जो अंदर से बेहद डरे हुए होते है वो ही जल्दबाजी करते है इमानदारी को ठठरी पर बाँधने की । आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:04am
इमानदारी जिस दिन खत्म हो जायेगी उस दिन सर्वनाश निश्चित है ये बिलकुल सही कह रही है आप आदरणीया राजेश कुमारी जी आभार आपको ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:00am
बिलियन सच कहा हैै आपने आदरणीया नीरज जी कि यह इतना आसान नहीं होता है सच को ठठरी पर कसना । लाख बुराइयाँ सर उठा ले इसके बावजूद इमानदारी नें बडे़ ही शान से अपने वजूद को कायम कर रखा है । आभार
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 6:56am
हृदयतल से आभार आपको कथा को मान देने के लिए आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ।
Comment by Ravi Prabhakar on August 7, 2015 at 8:07am

'वाह' । इस मंच पर एक दो शब्‍दी टिप्‍पणी देना स्‍वीकार्य नहीं है और इसे हल्‍की व फेसबुकिया टिप्‍पणी माना जाता है । अब 'वाह' के आगे मेरे पास शब्‍द ही नहीं है, निशब्‍द कर दिया आपकी लघुकथा के इस कलेवर ने । एक सशक्‍त व लीक से हट कर रची इस कथा के लिए आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय कांता जी । सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 6, 2015 at 7:57pm
ईमानदारी को सदा से बेईमानी से ही ख़तरा रहा है , बेईमानी उसे अनंत काल से उखाड़ने , मिटाने में लगी है , पर बिचारी बार जाती है।
बधाई इस प्रेरक प्रस्तुति पर , आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी , सादर।
Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 6, 2015 at 7:40pm
गज़ब लिखा आपने जीजी... बहुत ही सुन्दर
Comment by TEJ VEER SINGH on August 6, 2015 at 3:35pm

आदरणीय कान्ता जी,सुंदर  लघुकथा के लिए मेरी ओर से  हार्दिक बधाई!बहुत ही गहरी बात कह दी आपने इस लघुकथा के माध्यम से!अति उत्तम!पुनः बधाई!

Comment by विनय कुमार on August 6, 2015 at 2:55pm

बहुत अच्छे भाव की लघुकथा आदरणीया कान्ता रॉय जी , बधाई.

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 1:52pm

आदरणीय कांता जी बहुत ही सशक्त लघु कथा हुई है  … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
21 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service