For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैसे कैसे बिकता है आदमी -- डॉo विजय शंकर

आदमी की कीमत समझता है आदमी
किस किस भाव देखिये बिकता है आदमी ॥

जमीर कीमती है जानता है आदमी
तभी उसका बड़ा खरीदार है आदमी ॥

जब चाहे जहां चाहे खरीद ले कोई
हर जगह हर वक़्त खूब बिकता है आदमी ॥

रिश्ते - दोस्ती में सब देखता है आदमी
बिकते समय कुछ नहीं देखता है आदमी ॥

खरीदार होना चाहिए देशी हो विदेशी
जानवर से भी सस्ते में बिकता है आदमी ॥

गुलामी कुप्रथा थी इक जो खत्म हो गयी
अब तो खुद बिकने को आज़ाद है आदमी ॥

नेता, अफसर-बाबू , चपरासी सब बिकते हैं
बराबर होते हैं सब, जब बिकता है आदमी ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 883

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2015 at 9:00pm
आदरणीय सुश्री कांता रॉय जी , आपने तो पंक्ति दर पंक्ति बहुत सुन्दर विस्तृत विवेचन कर दिया। आपका बहुत बहुत आभार। आपने रचना को समय दिया , साथ में मान दिया , पुनः , आभार एवं धन्यवाद , सादर।
Comment by pratibha pande on August 5, 2015 at 8:13pm
रिश्ते दोस्ती में सब देखता है आदमी ,बिकते समय कुछ नहीं देखता है आदमी बहुत अच्छी पंक्तियाँ है ,बधाई आपको आ०विजय शंकर जी इस सशक्त रचना के लिए
Comment by Sushil Sarna on August 5, 2015 at 7:46pm

जमीर कीमती है जानता है आदमी
तभी उसका बड़ा खरीदार है आदमी ॥ … आदमी की खूब पहचान की है सर … नख से सिर तक उसके हर पहलू को आपने उजागर कर दिया है .... अपनी इस बेहतरीन ग़ज़ल के माध्यम से आदमी की आदमीयत दिखाने की जितनी तारीफ़ की जाए कम है … इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय  Dr. Vijai Shanker जी।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 5, 2015 at 7:06pm

खूब सर! आज का सच का बयान देती रचना! हार्दिक बधाई!

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on August 5, 2015 at 6:47pm

बहुत कमाल कहा है ...

गुलामी कुप्रथा थी इक जो खत्म हो गयी
अब तो खुद बिकने को आज़ाद है आदमी ॥

Comment by kanta roy on August 5, 2015 at 1:25pm
आदमी की कीमत समझता है आदमी
किस किस भाव देखिये बिकता है आदमी ॥.......आदमी के बिकने की बहुत बडी़ बात की है आपने यहाँ ....बढिया बात तो नहीं होता है आदमी का बिकना इसलिए पढकर एक आह ! सी निकली जरूर है वाह ! जैसे घुट कर रह गई ।


जमीर कीमती है जानता है आदमी
तभी उसका बड़ा खरीदार है आदमी ॥..... सच कहा है आपने अपनी इस पंक्ति में कि जमीर वाला ही जमीर की खरीद फरोख्त में आगे होता है । बढिया


जब चाहे जहां चाहे खरीद ले कोई
हर जगह हर वक़्त खूब बिकता है आदमी ॥..... बिकने को तैयार हमेशा , सूरत बदल बदल कर कीमतें आ जाती है ।


रिश्ते - दोस्ती में सब देखता है आदमी
बिकते समय कुछ नहीं देखता है आदमी ॥...... सही कहा है शत प्रतिशत कि इंसान दोस्ती रिश्तेदारी करते वक्त कितने जाँच पडताल करता है लेकिन स्वंय के बिकने से पहले अपने स्वंय की ही जाँच - पडताल भूल जाता है । बहुत बडी विडंबना है ये ।

खरीदार होना चाहिए देशी हो विदेशी
जानवर से भी सस्ते में बिकता है आदमी ॥...... आज इंसान की कीमत है हर जगह सामान की तरह । बिकने के लिए ही शुरू हो जाती है तैयारी । नैसर्गिक जिंदगी से दूर भौतिकता से चकाचौंध बेच कर अपना सब कुछ बडा खुश हो लेता है आदमी । वाह !!!

गुलामी कुप्रथा थी इक जो खत्म हो गयी
अब तो खुद बिकने को आज़ाद है आदमी ॥...... हाँ , अब हम स्वंय अपनी बोली लगाते है । पहले बेचते थे कोई और अब हम स्वंय ही अपनी जमीर के दलाल हो गये ।

नेता, अफसर-बाबू , चपरासी सब बिकते हैं
बराबर होते हैं सब, जब बिकता है आदमी ॥.......भेदभाव रहित सब एक से ही बिकने को आतुर ..... क्या जबरदस्त कटाक्ष किया है आपने । बहुत खूब लिखा है आपने ये बिकने के सिलसिले को आदरणीय डा. विजय शंकर जी बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
52 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे प्रयास को मान देने के लिए। सादर"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"छंद प्रवाह के लिए बहुत बढ़िया सुझाव।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service