For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :मीआ़दे उल्फ़त देखिये

2212 2212 2212


मीआ़दे उल्फ़त देखिये पूरी हुई
इतनी सी तब तो बात अब उतनी हुई.

क्या इश्क़ में दुनिया से तू भी तंग है
क्या तंज़ तुझ पे भी मेरे जैसी हुई.

दौरे गुज़श्ता ने असर कुछ यूँ किया
टूटा हुआ मैं,तू भी है टूटी हुई.

पाया है जो मेयार तेरे इश्क़ ने
लो! ज़िन्दगी क्या! रूह भी तेरी हुई.

ऐ चाँद! मुझको खींच ले ख़ुद की तरफ़
देखूं कि छत पे होगी वो आई हुई.

उनसा खिला गमले में इक तो गुल, अरे!
ख़ुशबूू भी उसमें हू ब हू उनसी हुई.

श्री सुनील

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 970

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 5:57pm
आदरणीय गिरिराज सर जी, ग़ज़ल की सराहना के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.
इंगित मिसरे या शे'र में मैं ये कहना चाह रहा हूँ आदरणीय कि इश्क़ की मीआ़द अब पूरी हो गई सी लगती है इसलिये (तभी तो , तब तो) छोटी सी बात भी इतनी बड़ी हो गई.
(इतनी सी.... तब तो बात अब उतनी हुई.) वर्ना ऐसी छोटी बात को इतनी तूल न दी जाती.
'थी ' करने से ये कहन प्रभावित हो रही है.
शायद स्पष्ट कर सका मैं... सादर.
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 5:10pm
धन्यवाद आदरणीय सुनील प्रसाद शाहाबादी जी.
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 5:07pm
सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मोहन सेठी जी.
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 5:06pm
धन्यवाद आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी.
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 5:04pm
आदरणीय राणा प्रताप सर जी, ग़ज़ल पे आपका आना हर्षित कर गया. शे'र पसंद आया आपको, मेरा लिखना सार्थक हुआ आदरणीय. बहुत - बहुत शुक्रिया आपका.
Comment by shree suneel on July 7, 2015 at 4:56pm
सराहना के लिए धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2015 at 11:13am

आदरणीय श्री सुनील भाई , बढिया गज़ल हुई है , हरेक शेर बेहतरीन हैं , दिली बधाइयाँ आपको ।

इस मिसरे में कही आप ये तो नही कहना चाहते हैं   --

इतनी सी तब तो बात अब उतनी हुई.   -   शायद   -- इतनी थी तब तो बात अब उतनी हुई.   ?

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on July 6, 2015 at 10:20pm
खुबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय।
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 6, 2015 at 7:12pm

आदरणीय shree suneel जी उम्दा ग़ज़ल के लिये दाद कबूल करें ...सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 6, 2015 at 6:09pm

अच्छा प्रयास हुआ है श्री सुनील जी, बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service