For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल- दिलबर का दीदार जिन्दगी

२२ २२ २२ २२

कहीं पे' ठण्डी' बयार जिन्दगी ।
कहीं लगे अंगार जिन्दगी ।।

पतझड और बहार जिन्दगी ।
सुख दुख का व्यापार जिन्दगी ।।

जाने कितने रंग से' खेलें।
होली का त्यौहार जिन्दगी ।।

नानी माँ की गोद में' है तो।
इमली,आम,अचार जिन्दगी ।।

इश्क के' मारों से जो पूछा।
दिलबर का दीदार जिन्दगी ।।

उनके होंटों के साहिल पर।
फूलों सी रसदार जिन्दगी ।।

कौन समझ पाया है इसको।
उलझन का संसार जिन्दगी ।।

कल राहुल फुटपाथ पे' देखी।
बेबस औ'र लाचार जिन्दगी ।।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 859

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 2, 2015 at 1:48pm

कभी लगे साजन का खत है।
कभी दिखे अखबार जिन्दगी ।।

हर शेर बेहतरीन हुआ है,गेयता भी कमाल! दिल से दाद प्रेषित है!

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 1:26pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 2, 2015 at 12:54pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है राहुल जी हार्दिक बधाई 

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 11:35am
आदरणीय धर्मेन्दर जी शुक्रिया
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 2, 2015 at 11:24am
बहुत खूब राहुल साहब, दाद कुबूल करें
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 9:24am
आदरणीय परी जी शुक्रिया
Comment by Pari M Shlok on July 2, 2015 at 9:15am
Rahul Dangi जी बेशक हर शेर के गज़ब मायने उम्दा पेशकश
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 2, 2015 at 7:42am
आदरणीयों इसमें दो शे'र और जोडे है पर वे पहले फेसबुक पर लिख दिये इसलिए एडिट करके नहीं जोड रहा। पर आपकी सलाह जरूर चाहुगाँ।

कभी लगे साजन का खत है।
कभी दिखे अखबार जिन्दगी ।।

बचपन की यादों में झाँके।
तो फिर है इतवार जिन्दगी ।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
12 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
21 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
21 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service