For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर(ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ १२२ १२

मिला कीमती वक़्त जाया न कर

बुरी बात होंठों पे लाया न कर

 

बड़ी जितनी चादर उसी में सिमट    

तू ये नाज़ नखरे दिखाया न कर

 

कभी वो तेरा हाथ देंगे मरोड़

किसी को तू ऊँगली दिखाया न कर

 

अदब से कहेगा सुनेंगे सभी

सुलगती  जुबाँ से सुनाया न कर

 

तवा गर्म है सब्र से काम ले

इन हाथों को अपने जलाया न कर

 

सही है अगर तू दिखा तो सबूत

हवा में यूँ तोते उड़ाया न कर

 

सभी खोलता “राज’ पैकर तेरा  

कोई बात दिल में छुपाया न कर

 

बहुत चोट लगती तुझे क्या पता

किसी को नजर से गिराया न कर

 

बुलंदी का रस्ता जहाँ बंद हो

उधर पाँव अपने बढ़ाया न कर  

-----------

Views: 1000

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 16, 2015 at 4:42pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,ये मानता हूँ कि उर्दू के कई शब्द हिन्दी में ग़लत प्रचलित हो गए हैं लेकिन आम बोल चाल में तो ठीक है मगर इन्हें ग़ज़ल में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, मिसाल के तौर पर अगर कोई अपनी ग़ज़ल में नह्र,क़ह्र,बह्र क़ाफ़िये लेता है तो इन क़वाफ़ी के साथ "शहर" का क़ाफ़िया नहीं आएगा,आपने लिखा है कि "ज़ाए" शब्द कई बड़े ग़ज़लकारों और शाइरों ने अपनी ग़ज़ल में लिया है,और आप के पास इसके कई उदाहरण है,मुझे ऐसा सिर्फ़ एक उदाहरण बताइये जिसमें किसी भी शाइर ने इस शब्द "ज़ाए" या "ज़ाया" को क़ाफ़िया बनाया हो,अगर ऐसी कोई मिसाल आप मुझे पेश करती हैं तो मैं आपकी बात से सहमत हो जाऊँगा,अन्यथा आपका क़ाफ़िया बदलना ही उचित होगा,मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि आप ऐसी कोई मिसाल पेश नहीं कर सकेंगी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2015 at 9:20am

आ० समर कबीर भाई जी ,शब्द का अर्थ समझाने के लिए हार्दिक धन्यवाद | उर्दू के या हिन्दी के बहुत से ऐसे शब्द हैं जो आम भाषा में दूसरी तरह प्रचलित हो गए हैं जैसे तजुर्बा ,शहर आदि ऐसे हजारों हैं  हम हिंदी भाषी  ग़ज़लों में प्रचलित शब्दों का प्रयोग अधिक करते हैं |पूर्णतः उर्दू ग़ज़ल हो तो आपकी बात सौ प्रतिशत सही है ज़ाया शब्द बहुत प्रचलित है कई शब्द कोष में भी अर्थ देखा कई बड़े ग़ज़लकारों ने इस शब्द का प्रयोग अपनी ग़ज़लों में किया जैसे --मीर तकी मीर की ग़ज़ल का एक मिसरा देखिये -काम हुए हैं सारे ज़ाया, हर साअत की समाजत से 
इस्तिग़्ना की चौगुनी उसने, ज्यूं-ज्यूं मैं इबराम किया

ये हो नहीं और भी कई ग़ज़लों के उदाहरण हैं मेरे पास ---मैं आपकी बात को नकार नहीं रही आप उर्दू के जानकार हैं किन्तु ये शब्द बचपन से सुनती आ रही हूँ तथा बड़े शयिरों की ग़ज़लों में देखा है तभी ये लिखने की हिम्मत की | 

Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 11:13pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,आपने मेरी प्रतिक्रिया ध्यान से नहीं पढ़ी ,मैंने अर्ज़ किया है कि आपके मतले के ऊला मिसरे में "ज़ाया" क़ाफ़िया सही नहीं है,सही शब्द है "ज़ाए",ये शब्द उर्दू का है,आइये इसके हिज्जे कर के आपको समझाऊँ,दुआद, अलिफ़ ,हमज़ह,हमज़ह के नीचे ज़ेर ,आख़िर में एन,इस तरह शब्द बना "ज़ाए" ,जिस का अर्थ है बर्बाद करना ,ख़त्म करना, इस लिहाज़ से आपका क़ाफ़िया सही नहीं है,इसे बदलना ही उचित होगा वैसे आपको अपनी ग़ज़ल पर पूरा इख़्तियार है,लेकिन सच्चाई यही है ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 15, 2015 at 5:21pm

आ० समर कबीर भाई जी ,आदाब ..आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,आपने सही इंगित किया जाया शब्द में नुक्ता लगाना भूल गई ज़ाया =  बर्बाद  अर्थात  मिला कीमती वक़्त बर्बाद  न कर...इस भाव से लिखा है 

कई बार हिंदी कन्वर्टर से गड़बड़ हो  जाती है इसे ठीक कर लूँगी आपका बहुत बहत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 15, 2015 at 5:17pm

आ० कांता रॉय जी,बहुत बहुत आभार आपका  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 15, 2015 at 5:16pm

आ० सुशील सरना जी,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी दिल से बहुत बहुत आभार | 

Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 4:24pm
बहना राजेश कुमारी जी,आदाब,बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

जनाब वीनस जी की इस्लाह पर ध्यान दीजियेगा,एक बात मैं भी कहना चाहूँगा ,मतले के ऊला मिसरे में "ज़ाया" क़ाफ़िया सही नहीं है,सही शब्द है "ज़ाए",बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by Sushil Sarna on June 15, 2015 at 2:21pm

अदब से कहेगा सुनेंगे सभी
सुलगती जुबाँ से सुनाया न कर

बहुत खूब .... सच को दर्शाते खूबसूरत अशआर … इस ग़ज़ल पर दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय राजेश कुमारी जी।

Comment by kanta roy on June 15, 2015 at 8:22am
बडे़ रूतबे है इस गजल की हर शेर में आपने बडी बात कही है ।
बहुत चोट लगती तुझे क्या पता
किसी को नजर से गिराया न कर ..... बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी इस सुंदर गजल के लिये
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on June 14, 2015 at 10:59pm

हर शेर बेहतरीन,बहुत ही लाजवाब गजल हुयी है आदरणीया!नमन!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
1 hour ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service