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मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं

मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलुन/फ़ाइलान


मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं
हर दिल पे हो रहा है असर देखते नहीं

दीवाने अपने हाल से रहते हैं बेख़बर
किस सम्त हो रहा है सफ़र देखते नहीं

उर्यानियत के खेल इन्हें भी पसंद हैं
ख़ामोश हैं ये एहल-ए-नज़र देखते नहीं

वो देश हित की फ़िक्र में ग़लताँ हैं आज कल
ये और बात है कि इधर देखते नहीं

अंजान बन के पूछ रहे हो कि क्या हुवा
अख़बार में छपी है ख़बर देखते नहीं

कुछ देर और सब्र का दामन न छोड़ना
वो सामने खड़ी है सहर देखते नहीं

हर लम्हा जिन को इज़्ज़त-ओ-ग़ैरत का पास है
पगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नहीं

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by मनोज अहसास on June 8, 2015 at 3:14pm
इस खूबसूरत ग़ज़ल की राह में ये खाकसार दो फूल मुहब्बत के चढ़ाता है
सादर बधाई
Comment by shree suneel on June 8, 2015 at 2:46pm
कमाल के अशआर.. ख़ूब ख़ूब ख़ूब ग़ज़ल कही आपने आदरणीय समर कबीर सर. झूमा दिया आपने.
"कुछ देर और सब्र का दामन न छोड़ना
वो सामने खड़ी है सहर देखते नहीं".. क्या कहने..
"मुंह देखते हैं मेरा हुनर देखते नहीं
हर दिल पे हो रहा है असर देखते नहीं"... उम्दा.. उम्दा
"हर लम्हा जिन को इज़्ज़त-ओ-ग़ैरत का पास है
पगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नहीं"... क्या बात है!
इस शानदार.. ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए तहेदिल से मुबारकबाद पेश है
Comment by maharshi tripathi on June 8, 2015 at 2:31pm
वो देश हित की फ़िक्र में ग़लताँ हैं आज कलये और बात है कि इधर देखते नही...
हर लम्हा जिन को इज़्ज़त-ओ-ग़ैरत का पास हैपगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नही......waah bahut khoob...aa. samar kabeer ji......shandaar....
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 8, 2015 at 2:23pm

आदरणीय समर कबीर साहब,नमस्कार, बहुत खूबसूरत, ग़ज़ल बनी है,
"पगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नहीं"
बधाई, सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 8, 2015 at 2:15pm

वाह समर साहिब

कमाल है
 हर लम्हा जिन को इज़्ज़त-ओ-ग़ैरत का पास है
पगड़ी को देखते हैं वो सर देखते नहीं

Comment by Shyam Narain Verma on June 8, 2015 at 11:48am
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

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