For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

विवशता (लघुकथा) : डॉo विजय शंकर

बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था आज मंत्री जी का। सारे दिन शैक्षिक गुणवत्ता की कायर्शाला में अधिकारियों , शिक्षाविदों के साथ वाद-विवाद में जबरदस्त सक्रिय रहे माननीय मंत्री जी, बार बार यही दोहराते रहे , " सदियों से हम विश्व-गुरु रहें हैं, हम ऐसी शिक्षा दें कि कोई भी शिक्षा के लिए विदेश न जाना चाहे।"
शाम घर जाते कार में पी ए से बता रहे थे:

"हफ्ते भर बाहर रहूंगा, रात दिल्ली निकल रहा हूँ I कल अमेरिका की फ्लाइट है, बेटे को हॉस्टल छोड़ कर आना है।.कहाँ कहाँ का जुगाड़ लगाया है तब एडमिशन मिला है इस बार। "
पी ए ने भी पुए पर चीनी रखी , " सर बस , अब देखियेगा , बाबा कुछ ही साल में पूरे अंग्रेज बन के लौटेंगे। "
" देखो , ईश्वर सुन ले हमारी " , गहरी सांस छोड़ते हुए कहा मंत्री जी ने।

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 23, 2015 at 8:16pm
बहुत अच्छा कटाक्ष । सफल लघुकथा । हार्दिक बधाई आ. विजय शंकर सर।
Comment by Tanuja Upreti on April 23, 2015 at 7:28pm
आदरणीय,अच्छा व्यंग्य है । पुए पर चीनी रखना वाक्य मन को बड़ा भा गया।
Comment by Nidhi Agrawal on April 23, 2015 at 6:21pm

सटीक और सचित्र कर देती लघुकथा .. झूठ के मुलम्मे बंद कमरों में खुलते हैं 

Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2015 at 2:54pm
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 2:53pm

विजय सर !

कथनी करनी का अंतर है  आदरणीय -पर उपदेश कुशल बहुतेरे ---

Comment by savitamishra on April 23, 2015 at 12:51pm

बढ़िया कथा आदरणीय ..सादर नमस्ते

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
yesterday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service