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विवशता (लघुकथा) : डॉo विजय शंकर

बहुत ही व्यस्त कार्यक्रम था आज मंत्री जी का। सारे दिन शैक्षिक गुणवत्ता की कायर्शाला में अधिकारियों , शिक्षाविदों के साथ वाद-विवाद में जबरदस्त सक्रिय रहे माननीय मंत्री जी, बार बार यही दोहराते रहे , " सदियों से हम विश्व-गुरु रहें हैं, हम ऐसी शिक्षा दें कि कोई भी शिक्षा के लिए विदेश न जाना चाहे।"
शाम घर जाते कार में पी ए से बता रहे थे:

"हफ्ते भर बाहर रहूंगा, रात दिल्ली निकल रहा हूँ I कल अमेरिका की फ्लाइट है, बेटे को हॉस्टल छोड़ कर आना है।.कहाँ कहाँ का जुगाड़ लगाया है तब एडमिशन मिला है इस बार। "
पी ए ने भी पुए पर चीनी रखी , " सर बस , अब देखियेगा , बाबा कुछ ही साल में पूरे अंग्रेज बन के लौटेंगे। "
" देखो , ईश्वर सुन ले हमारी " , गहरी सांस छोड़ते हुए कहा मंत्री जी ने।

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:32am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सही कहा आपने ,आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,बधाइयों के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:30am
प्रिय जीतेन्द्र जी , कथा एवं व्यंग आपको सही लगा ,आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:28am
प्रिय मिथिलेश जी , व्यंग आपको सही लगा ,सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:25am
आदरणीय सुश्री तनुजा उप्रेती जी , व्यंग आपको अच्छा लगा , प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:22am
आदरणीय सुश्री निधि अग्रवाल जी , कथा आपको अच्छी लगी , प्रतक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार ,धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:21am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , कथा आपको अच्छी लगी , आपका बहुत बहुत आभार ,धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:19am
जी, आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आपका बहुत बहुत आभार , आपको धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 24, 2015 at 6:17am
आदरणीय सुश्री सविता मिश्रा जी , आपका आभार , आपको सादर धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2015 at 11:12pm

इसी दोहरी मानसिकता के चलते कोई भी  शुभ परिवर्तन सम्भव नहीं है !! बहुत सुन्दर !! हार्दिक बधाइयाँ , आ, विजय भाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2015 at 8:47pm

आज तो आपने एक कटु सत्य को गद्य में परिवर्तित कर दिया. बहुत बढ़िया विषय पर उम्दा लघुकथा प्रस्तुत की. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डा,विजय जी

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