For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे

221-2121-1221-212

हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे
मेहनत दिखे सभी को, समर बोलने लगे

उस बेवफ़ा से बोलना तौहीन थी मेरी
लेकिन ये मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर बोलने लगे

तहज़ीब चुप है इल्मो-अदब आज शर्मसार
देखो पिता के मुँह पे पिसर बोलने लगे

आँखों से मैं ज़बान का ऐसे भी काम लूँ
जो भी मैं कहना चाहूँ नज़र बोलने लगे

सब हमको बुतपरस्त समझते रहे मगर
ऐसे तराशे हमने , हजर बोलने लगे

दैरो हरम के नाम पे जब शह्र बँट गया
दोनों तरफ़ से तेग़-ओ-तबर बोलने लगे

मैंने ग़ज़ल सुनाई ज़फ़र की ज़मीन में
सब दोस्त मेरे मुझको ज़फ़र बोलने लगे

Views: 922

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shree suneel on April 22, 2015 at 1:01am
उस बेवफ़ा से बोलना तौहीन थी मेरी
लेकिन ये मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर बोलने लगे/
आदरणीय दिनेश जी, ख़ूबसूरत शे'र, शानदार ग़ज़ल
के लिए बधाई.. बधाई..
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 21, 2015 at 11:48pm

वाह! आदरणीय दिनेश सर कमाल की गजल हुयी है! ढेरों मुबारकबाद!

आदरणीय समर सर से मै सहमत हूँ...

"आँखों से मैं ज़बान का ऐसे भी काम लूँ
"जो भी मैं कहना चाहूँ नज़र बोलने लगे"
ऐसा कहने से शेर व्यापक हो जायेगा..  गुस्सा शेर को सीमित कर रहा है!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 21, 2015 at 11:12pm

वाह वाह आदरणीय दिनेश भाई जी कमाल कर दिया ...आपकी ग़ज़ल ने मुग्ध कर दिया ..... क्या खूब ग़ज़ल कही है शेर दर शेर दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by Samar kabeer on April 21, 2015 at 11:01pm
जनाब दिनेश कुमार जी,आदाब,क्या कहने माशाअल्लाह,दिन ब दिन शाईरी निखरती जा रही है,इस मुरस्सा ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
जैसा कि आपने मुझे कुछ कहने की इजाज़त दे रखी है,ये अशआर देखिये :-

"आँखों से मैं ज़बान का ऐसे भी काम लूँ
गुस्से में आ के मेरी नज़र बोलने लगे"
इस में कोई दोष नहीं है,लेकिन शब्द "ग़ुस्सा" इस शैर के हुस्न को कम कर रहा है,सानी मिसरा अगर एसे पढ़ें :-

"जो भी मैं कहना चाहूँ नज़र बोलने लगे"

इसी ज़िम्न में ये शैर देखिये :-

"जब से सुनाई ग़ज़ल-ए-ज़फ़र मैंने बज़्म में
सब दोस्त मेरे मुझको ज़फ़र बोलने लगे"

इसमें "ग़ज़ल-ए-ज़फ़र" अच्छा नहीं लग रहा,इसे इस तरह पढ़ कर देखिये :-

"मैंने ग़ज़ल सुनाई ज़फ़र की ज़मीन में
सब दोस्त मेरे.मुझ को ज़फ़र बोलने लगे "

एक बार फ़िर मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service