| ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ कामिल - मुतफ़ाइलुन |
| हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा कभी थमता नहीं | |
| शक है वहीँ डर है कहीं प्रिय पास है समता नहीं | |
| जब साथ है हर बात है कटु बात भी मिसरी लगे , |
| अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं ममता नहीं | |
| छतरी वहीँ गुड़िया नहीं कब से रहीं गुम है कहीं , |
| मसला वहीँ तनहा अभी रहना कहीं जमता नहीं | |
| पहिया बिना चलती नहीं रुकती कहीं मजधार में , |
| पटरी वहीँ गड्डी वहीँ इक पाँव से थमता नहीं | |
| वन में कहीं चटकी कली महके कहीं बहती हवा , |
| पथ में कहीं मजनू पड़ा उठता कभी क्षमता नहीं | |
| जग में सभी मिलते रहें खुश हों सदा मन से सभी , |
| जब वर्मा गम हो जिसे दिल तो कहीं रमता नहीं | |
| श्याम नारायण वर्मा |
| (मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी,इस सुन्दर ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई आपको ! सादर
रणीय खुर्शीद जी रचना पसंद करने के लिए और राय देने के लिए आप का बहुत बहुत आभार | शब्दों के चयन में आगे से ध्यान रखेगें |
सादर ....
आदरणीय शिज्जू 'शकूर ' जी राय देने के लिए आप का बहुत बहुत आभार |
आदरणीय महर्षी त्रिपाठी जी और सोमेश कुमार जी रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार |
सादर ....
| जब साथ है हर बात है कटु बात भी मिसरी लगे , |
| अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं ममता नहीं | |
| छतरी वहीँ गुड़िया नहीं कब से रहीं गुम है कहीं , |
मसला वहीँ तनहा अभी रहना कहीं जमता नहीं | आदरणीय श्याम जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,बधाई आपको ,बहर -2212--2212--2212--2212 लग रही है |सादर अभिनन्दन | |
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी आपकी कोशिश के लिये बधाई पर आप तक्तीअ करने में चूक गये सनातनी छंद की तरह यहाँ हक का मात्राक्रम 11 नहीं बल्कि 2 होगा यही गलती आपके हर शेर में है जहाँ आपने 2 को 11 गिन लिया। दूसरी बात यदि आप किसी नाम का यथा अपने तखल्लुस का इस्तेमाल करते हैं तो उसकी मात्रा नहीं गिराई जा सकती।
| हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा कभी थमता नहीं | |
| शक है वहीँ डर है कहीं प्रिय पास है समता नहीं | |
| जब साथ है हर बात है कटु बात भी मिसरी लगे , |
| अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं ममता नहीं | |
| छतरी वहीँ गुड़िया नहीं कब से रहीं गुम है कहीं , |
मसला वहीँ तनहा अभी रहना कहीं जमता नहीं | sunder verma bhai ,bdhai is sunder koshish pr |
| वन में कहीं चटकी कली महके कहीं बहती हवा , |
| पथ में कहीं मजनू पड़ा उठता कभी क्षमता नहीं | |
| जग में सभी मिलते रहें खुश हों सदा मन से सभी , |
| जब वर्मा गम हो जिसे दिल तो कहीं रमता नहीं |,,,,,,,,,,,अच्छी गजल पर दाद कुबुलें आ. Shyam Narain Verma जी | |
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