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दोहा गीत (सुबह -सुबह)

देखो फिर से हो गया
मुख प्राची का लाल।

रविकर के आते हुआ सुन्दर सुखद प्रभात।
तरुअर देखो झूमते नाच रहें हैं पात।
किरणों ने कुछ यूँ मला इनके गाल गुलाल।

मंद मंद यूँ चल रही शीतल मलय बयार।
प्रकृति सुंदरी कर रही अपना भी शृंगार।।
फ़ैल गया चारो तरफ किरणों का जब जाल।

जन जीवन सुखमय हुआ,समय हुआ अनुकूल।
कोयल भी अब गा रही,खिले खिले हैं फूल।।
ठिठुरे तन को घूप ज्यों शुक को मिले रसाल।

-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on January 6, 2015 at 10:47am
सूबे सिंह जी हार्दिक आभार आपका
Comment by somesh kumar on January 6, 2015 at 10:43am

प्रयोगधर्मिता भी सृजनात्मक का एक आवश्यक अवयव है ,इस सुंदर प्रयास पर बधाई 

Comment by सूबे सिंह सुजान on January 5, 2015 at 11:21pm

सुन्दर रचना के लिये बधाई ।

Comment by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 11:09pm
उत्साह वर्धन हेतु बहुत आभार भाई मिथिलेश जी।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 11:08pm
हरि प्रकाश जी हार्दिक आभार आपका।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on January 5, 2015 at 11:07pm
आदरणीय गोपाल जी वरिष्ठ रचनाकार संजीव वर्मा जी का नवगीत
दोहा नवगीत:
संजीव
.
सच की अरथी उठाकर
झूठ मनाता शोक
.
बगुला भगतों ने लिखीं
ध्यान कथाएँ खूब
मछली चोंचों में फँसीं
खुद पानी में डूब
जाँच कर रहे केंकड़े
रोक सके तो रोक
.
बार-बार जब फेंकता
जाल मछेरा झूम
सोनमछरिया क्यों फँसे
किसको है मालूम?
उतनी ज्यादा चाह हो
जितनी होती टोंक
.
कर पूजा-पाखंड हम
कचरा देते दाल
मैली होकर माँ नदी
कैसे हो खुशहाल?
मनुज न किंचित चेतते
श्वान थके हैं भौंक

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 5, 2015 at 8:44pm

सुन्दर और सराहनीय प्रयोग भाई  राम शिरोमणि पाठक जी,हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

दोहा छंद का प्रयोग कर अच्छा गीत बन पड़ा है. बहुत सरस गीत है. मुझे पढ़कर आनंद आ गया.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 5, 2015 at 7:55pm

पाठक जी

आपने दोहे से गीत बनाने का प्रयास किया है , जो दोहे की मर्यादा के अनुरूप नहीं है i इसमें केवल चार चरणों में अपनी बात कहनी होती है और उसी मे अभिव्यक्ति पूर्ण होता है i अर्थात एक दोहे का दुसरे से कोई सम्बन्ध नहीं होर्त i इस प्रतिबन्ध के साथ आपके प्रयास की  सराहना करता हूँ i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 5, 2015 at 6:35pm

सुन्दर अभिव्यक्ति राम शिरोमणि पाठक जी,हार्दिक बधाई!

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