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नवगीत : साल गुजरे जा रहे हैं.

**साल गुजरे जा रहे हैं.

आ रहे पल, जा रहे पल

साल गुजरे जा रहे हैं.

 

वक़्त बन के पाहुना,

आ गया है द्वार पर.

साज सज्जा वाद्य धुन.

गूंज मंगलचार घर.

नवल वधु से कुछ लजा,

दिन सुनहरे आ रहे हैं.

साल गुजरे जा रहे हैं.

 

बोझ बढ़ता नित नया.

स्कूल का बस्ता हुआ,

दाम बढ़ते माल के,

आदमी सस्ता हुआ.

नाम सुरसा का सुना जब,

आमजन भय खा रहे है.

साल गुजरे जा रहे हैं.

 

सूर्य भटका घूमता,

वक़्त के दुष्चक्र में.

नापता है दूरियां,

चाँद भी किस फ़िक्र में.

पल्लवित, पीले हुए कुछ.

वस्त्र बदले जा रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं.

**हरिवल्लभ शर्मा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Hari Prakash Dubey on January 1, 2015 at 8:05pm

सूर्य भटका घूमता,

वक़्त के दुष्चक्र में.

नापता है दूरियां,

चाँद भी किस फ़िक्र में. कल्पना की ऊँची उड़ान ...सुन्दर रचना ,  बधाई स्वीकारें आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी. सादर !

Comment by khursheed khairadi on January 1, 2015 at 2:20pm

वक़्त बन के पाहुना,

आ गया है द्वार पर.

साज सज्जा वाद्य धुन.

गूंज मंगलचार घर.

नवल वधु से कुछ लजा,

दिन सुनहरे आ रहे हैं.

साल गुजरे जा रहे हैं.

आदरणीय हरिवल्लभ सर ,बहुत सुन्दर और भावपूर्ण नवगीत है |पारंपरिक देशज शब्द इसे बख़ूबी अलंकृत कर रहें हैं |सादर अभिनन्दन 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2015 at 1:43pm

आदरणीय हरी बल्लभ जी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई 

बोझ बढ़ता नित नया.

स्कूल का बस्ता हुआ,

दाम बढ़ते माल के,

आदमी सस्ता हुआ.   बिलकुल सही बात 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2015 at 1:11pm

पल्लवित, पीले हुए कुछ.

वस्त्र बदले जा रहे हैं.
साल गुजरे जा रहे हैं-------------------हरिवल्लभ जी वह---वाह -- अति सुन्दर i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 1, 2015 at 10:43am

साल गुजारे जा रहे है - सुंदर नवगीत अभिव्यक्त हुआ है | हार्दिक बधाई -

स्वागत हो नव वर्ष का,लेता विदा अतीत,

समय लगे शुभ काज में, सार्थक समय व्यतीत

नए वर्ष का आगमन, खुशिया मिले हजार, 

समय चक्र गतिशील है, समय जायगा बीत |

- रामानुज 

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 1, 2015 at 9:11am

वक़्त बन के पाहुना,

आ गया है द्वार पर.

साज सज्जा वाद्य धुन.

गूंज मंगलचार घर.

नवल वधु से कुछ लजा,

दिन सुनहरे आ रहे हैं.

साल गुजरे जा रहे हैं..........बहुत खूब ! सच है वक्त पाहुना ही तो है, आता वक्त क्या लेकर आयेगा नहीं कहा जा सकता किन्तु अच्छे वक्त की कामना सभी की होती है .सुन्दर नवगीत की प्रस्तुति पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी. सादर.

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