For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गैर की ग़ज़ल थी तू... ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

वक़्त के थपेड़ो में.... खर्च आशिकी अपनी

आज फिर मुहब्बत ने हार मान ली अपनी

 

लफ्ज़ भी किसी के थे, दर्द भी किसी का था

गैर की ग़ज़ल थी तू... सिर्फ सोच थी अपनी

 

भूख की गुजारिश में रात भर बिता कर के

बेच दी चराग़ों ने........ आज रौशनी अपनी

 

आजकल कहीं अपना जिक्र भी नहीं मिलता

वक़्त था कभी अपना, बात थी कभी अपनी

 

आशना तसव्वुर में........ कुर्बते मयस्सर है

फिर किसी परीवश से जान जा लगी अपनी

 

आसमान की यारो छत मिली हमें लेकिन

चाँद भी नहीं अपना, चाँदनी नहीं अपनी

 

दौलते जहां भर की आपको मुबारिक़ हो

मस्त है फ़कीरी में आज जिंदगी अपनी

 

खूब हम समंदर से....... दुश्मनी निभाते थे

आज क्या रहे हम तो, आज क्या रही अपनी

 

वक़्त का परिन्दा फिर आसमां उठा लाया

हाय बेबसी अपनी..... और बेक़सी अपनी

 

-----------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर 
-----------------------------------------------------

 

बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन अशतर:

अर्कान –   फ़ाइलुन / मुफ़ाईलुन / फ़ाइलुन / मुफ़ाईलुन

वज़्न –    212 / 1222 / 212 / 1222

 

Views: 776

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 6:02pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी इस प्रयास की सराहना के लिए बहुत बहुत आभार ... हार्दिक धन्यवाद  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 28, 2014 at 3:41pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , गज़ल बहुत सुन्दर हुई है , सभी अशआर लाजवाब हैं , दिलीबधाइयाँ स्वीकार करें । आज क्या रहे हम तो, आज क्या रही अपनी - इस मिसरे में तो की कितनी ज़रूरत है सोचियेगा ।

Comment by ram shiromani pathak on December 28, 2014 at 3:04pm
भाई मिथिलेश जी बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है।।हार्दिक बधाई आपको

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 1:43pm

दुरूस्त है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 28, 2014 at 1:32pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी सही कहा ....कर के .... एक साथ गलत है ...... इसे यूं करने की सोच रहा हूँ 

//भूख की गुजारिश में रात भर बिता के फिर // ....सादर 

सराहना के लिए आभार ... हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 28, 2014 at 9:16am

वाह आदरणीय मिथिलेश भाई एक के बाद एक मोती जड़ दिये आपने बहुत खूबसूरत ग़ज़़ल हुई है हर शेर के लिये आपको तहेदिल से दाद देता हूँ

//भूख की गुजारिश में रात भर बिता कर के//

उम्मीद है मेरी बात आप समझ गये होंगे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .दीपावली

दोहा पंचक. . . . . . दीपावलीदीप जले हर द्वार पर, जग में हो उजियार  ।आपस के सद्भाव से, रोशन हो संसार…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
3 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
17 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए ।"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service