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खुदा बोलता है : ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

122-122

------------

जहां में लगा है

खुदी से जुदा है

 

हुआ मैं पशेमाँ

गज़ब देखता है

 

कभी रूह झांको

खुदा बोलता है

 

सजन शे’र जैसा

लबों पे सजा है

 

सजा ज़िन्दगी की

अजब फैसला है

 

 

हंसी जब्त कर लो

हंसी में सदा है

 

बड़ी दास्तां है

मगर ये ज़दा है

सफ़र है गली में 

मकां में अमा है 

 

ग़मों का य’ दरिया

कहे कब रुका  है

 

जिसे देखता हूँ

नज़र फेरता है

----------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) 

© मिथिलेश वामनकर 
----------------------------------

 

बह्र-ए-मुतक़ारिब मुरब्बा सालिम

अर्कान – फऊलुन- फऊलुन    

वज़्न –   122-122

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 25, 2014 at 6:39pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , मै ये बात आपसे कहने ही वाला था पर अनावश्यक समज के रुक गया था ,  कि आप रचनायें पोस्ट करने में जल्दबाजी तो नहीं कर रहे हैं , आदरणीय वीनस भाई ने मुझसे कहा था कि ग़ज़ल पूरी हो जाने के बाद कमसे कम 10 दिन अपने पास रखें और रोज़ एक बार ज़रूर पढें , खामियाँ खुद ब खुद कम से कम होते चली जायेंगी । आपको सही लगे तो आप भी इसे अपना सकते हैं , कोई ज़रूरी नियम नहीं है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 6:32pm
आदरणीय गिरिराज सर आपको ये प्रयास पसंद आया लिखना सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार। दरअसल ग़ज़ल लिखते ही अतिउत्साह में पोस्ट कर दी और पोस्ट करने के 10 मिनट बाद ध्यान गया। अब सुधार कर लूंगा। सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 6:28pm
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी छोटी बह्र में ग़ज़ल का प्रयास आपको पसंद आया हार्दिक आभार धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 25, 2014 at 6:23pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , छोटी बहर में अच्छी बात कही है , बधाई स्वीकार करें ।

आपने स्वयं कह दिया है . रवाँ , ज़बाँ और मकाँ  तीनो  अशआर  गज़ल से ख़ारिज हो रहे हैं , फिर से देख लीजियेगा ।

Comment by Hari Prakash Dubey on December 25, 2014 at 6:15pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी,

सजा ज़िन्दगी की

अजब फैसला है.....सुन्दर ,हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 3:03pm
आदरणीय गुमनाम जी ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ। आभार हार्दिक धन्यवाद।
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 25, 2014 at 2:35pm
छोटी बहर में कमाल ग़ज़ल हुई है बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 12:47pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर छोटी बह्र में प्रयास किया है, सदा जबां के आ आं में काफ़िया दोष आ गया है जिससे तीन अशआर बेबहर हो गए है। रचना आपको पसंद आई, आभार। हार्दिक धन्यवाद।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 25, 2014 at 12:40pm

वामनकर जी

छोटी बह्र पर भी धमाल i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 12:20pm
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी रचना आपको पसंद आई, आभार, हार्दिक धन्यवाद। छोटी बह्र में लिखनें का प्रयास किया है।

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