पूरब से जैसे चले, शीतल मंद बयार ।
मैं रोया तुम रो पड़ी, समझो जीवन पार ।१।
जीवनसाथी तू सखी, इक मंदिर का छंद ।
तेरे सहचर में मिला, पूजा का आनंद ।२।
तेरी फूलों-सी हंसी, कलियों सी मुस्कान ।
जीवन को जैसे मिला, खुशियों का सामान।३।
ईश्वर ने कैसा रचा, तेरा मेरा साथ ।
मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ ।४।
रिश्ता अपना खूब है, तू शाखा मैं पात ।
बिन बोले क्या खूब तू, समझे मेरी बात।५।
दरपन देख संवार लो, माथे का सिन्दूर ।
सूरज जैसे क्षितिज में, फिसला है कुछ दूर ।६।
अपनी यादों की सखी, मत छेड़ो वो बात।
हँसते-रोते फिर कही, बीत न जाए रात ।७।
जीवन में चाहे मचे, अपने भागमभाग।
साथ रहे तो गीत हो, बात करें तो फाग।८।
ठंडी ठंडी रेत पर, चलती हो तुम साथ।
बातें करती चांदनी, बीते सारी रात।९।
परबत से इक पेड़ तक, ऐसे उतरी शाम।
चुपके से वो लिख गई, जैसे तेरा नाम ।१०।
तुमने हँसकर कह दिया, जग माटी का खेल।
मन दीपक जलता रहा, बिन बाती बिन तेल।११।
निकलो जब परदेश को, धुप दिए के साथ।
सिर्फ रहेंगे पास में, चूड़ी वाले हाथ ।१२।
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(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
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Comment
हार्दिक आभार आदरणीय आशुतोष जी
इस दोहावली के होने में मेरी जीवन संगिनी का बड़ा हाथ है
ईश्वर ने कैसा रचा, तेरा मेरा साथ ।
मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ ।४।
क्या बात है ..हार्दिक बधाई के साथ
आदरणीय सोमेश भाई बहुत बहुत आभार हार्दिक धन्यवाद ....
बहुत सुंदर और जीवन-साथी के विभिन्न पक्षों को रेखांकित करते दोहे ,बधाई भाई जी
आदरणीय संशोधन अप्रूवल के लिए धन्यवाद .... संशोधन पश्चात् दोहे सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर आपने सही कहा
हो गया जीवन पार और मेंह्दी वाले हाथ दोनो पदों में मात्रा 12 हो रही है मेहँदी में आधा 'ह' कर छूट ली है और हो गया जीवन पार में संशोधन का प्रयास करता हूँ ....आपने रचना को समय दिया, दोहे पसंद आये लिखना सार्थक हुआ, आभार धन्यवाद
आदरणीय नीरज मिश्रा जी आपको दोहे पसंद आये लिखना सार्थक हुआ. वैसे प्रेम की महिमा पर बहुत कम लिखा है मैंने . अपनी जीवनसंगिनी से प्रभावित होकर पहली बार इस विषय पर इतने सारे दोहे लिखे है ... आपने रचना को समय दिया आभार धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश भाई , लाजवाब दोहावली के लिये दिली बधाइयाँ ॥
हो गया जीवन पार
और
मेंह्दी वाले हाथ ----- दोनो पदों में मात्रा 12 हो रही है , देख लीजियेगा ।
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