For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : सुकून (गणेश जी बागी)

                         व्यंग्यात्मक शैली में लिखने के लिए जाना जाता है, उसकी कवितायेँ बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से राजनेताओं पर तीखी मार करती हैं, उसकी कविता प्रतिष्ठित अखबार के साहित्यिक स्तम्भ में आज प्रकाशित हुई है, कल से ही वो परेशान और बेचैन था, जाने क्या होगा, पता नहीं उसकी अभिव्यक्ति को लोग समझ भी पाएंगे अथवा नहीं, रात भर वह सो न सका ।
                        सुबह होते ही मोबाइल की घंटियां बजने लगी, उसका मन शांत था और चेहरे पर सुकून के भाव थे, उसकी अभिव्यक्ति समझ ली गयी थी, गालियों संग धमकियों का दौर चालू हो गया था ।

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => अतुकान्त कविता : पगली

Views: 1167

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2014 at 4:11pm

आदरणीय बागी जी , व्यंग्य बाण की मार ऐसे ही होती है , हँसे कि रोये ? सुन्दर लघुकथा के लिये बधाइयाँ ।

Comment by Archana Tripathi on December 6, 2014 at 3:36pm
लोग अभिव्यक्ति खूब समझते है बस अनदेखा कर देते है।बधाई गणेश बागी जी।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2014 at 1:53pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय हरी प्रकाश जी। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2014 at 1:53pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति लघुकथा की सार्थकता को प्रमाणित करती है, उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2014 at 1:50pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, उत्साहवर्धन हेतु हृदय से आभार।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2014 at 1:49pm

आदरणीय सुशील सरना जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 6, 2014 at 1:49pm

सराहना हेतु आभार आदरणीय डॉ आशुतोष जी।

Comment by somesh kumar on December 4, 2014 at 11:05pm

विरोधों में जो जले वो मशाल है 

विरोधियों में जो लिखे वो कलम का लाल है |

हर बार की तरह इस बार भी गागर में सागर |लेखक की मनोदशा और उसकी सफ़लता का इतना सफल वर्णन |आप की लेखन-शैली से बहुत प्रभावित हूँ |एक अन्य मित्र निलेश जी हैं जिनकी लम्बी अनुपस्तिथि अखर रही है उम्मीद है वो भी शीघ्र हमारे बीच स्वस्थ होकर लौटेंगे |

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 4, 2014 at 10:01pm

आदरणीय गणेश भाईजी,

विष बुझे तीर सी लगती हैं, व्यंग्य कलम की मार।

तिलमिलाते नेता अफसर, जो हैं भ्रष्ट गद्दार ॥

हार्दिक बधाई लघु कथा की।  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 8:43pm

नेता लोग किसी और चीज से इतना नहीं डरते जितना अखबार से डरते हैं .....उस पर कविता भी ऐसी ....तो धमकियाँ ही तो देना जानते हैं बढ़िया कटाक्ष के साथ एक लेखक की मनोदशा को भी भलिभांति दर्शाया है लघु कथा में ...बहुत ही उत्कृष्ट लघु कथा बनी ही \हार्दिक बधाई आ० गणेश जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service